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के शहरों छाल:
छाल
छाल-छाल
वृक्षों के तना, शाखा, जड़ आदि के सबसे ऊपरी आवरण को छाल या वल्क (Bark) कहते हैं। 'छाल' तकनीकी शब्द नहीं है। छाल को दो भागों में बंटा हुआ मान सकते हैं - आन्तरिक
छाल-छाल धरमजयगढ मण्डल
छाल धरमजयगढ मण्डल में भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के अन्तर्गत रायगढ़ जिले का एक गाँव है। छत्तीसगढ़ सांस्कृतिक छत्तीसगढ जनजातियां कला खेल गोठ सतनाम पंथ छत्तीसगढ़
छाल-सिनकोना
वृक्ष के रूप में उपजता है। यह रूबियेसी (Rubiaceae) कुल की वनस्पति है। इनकी छाल से कुनैन नामक औषधि प्राप्त की जाती है जो मलेरिया ज्वर की दवा है। यह बहुवर्षीय
छाल-छाल रोग
असंक्रामक दीर्घकालिक त्वचा विकार है जो कि परिवारों के बीच चलता रहता है। छाल रोग सामान्यतः बहुत ही मंद स्थिति का होता है। इसके कारण त्वचा पर लाल-लाल खुरदरे
छाल-मुंह के छाले
के द्वारा छाला बना रहता है। मुंह के छाले के दो आम प्रकार एफ्थस छाले और बुखार के छाले या फीवर ब्लिस्टर्स हैं। होंठों के आस-पास बुखार के छाले हर्पस सिम्प्लेक्स
छाल-बरगद
बीमारियों और स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज के लिए बरगद की जड़ों, पत्तियों और छाल का इस्तेमाल करते हैं, जैसे: दस्त का इलाज: नए पत्तों को पानी में भिगोकर आप
छाल-दालचीनी
परिवार का है। यह श्रीलंका एवं दक्षिण भारत में बहुतायत में मिलता है। इसकी छाल मसाले की तरह प्रयोग होती है। इसमें एक अलग ही सुगन्ध होती है, जो कि इसे गरम
छाल-भूर्ज
वसंत ऋतु में प्रकट होते हैं। इनके फल छोटे छोटे और पंखदार होते हैं। वृक्ष की छाल कागज के सदृश उखड़ती है, जिसे 'भोजपत्र' कहते हैं। एक समय भारत में भोजपत्र
छाल-अर्जुन वृक्ष
जाता है। इसकी छाल पेड़ से उतार लेने पर फिर उग आती है। छाल का ही प्रयोग होता है अतः उगने के लिए कम से कम दो वर्षा ऋतुएँ चाहिए। एक वृक्ष में छाल तीन साल के
छाल-चिरायता
क्षुप 2 से 4 फुट ऊँचे एक-वर्षायु या द्विवर्षायु होते हैं। इसकी पत्तियाँ और छाल बहुत कडवी होती और वैद्यक में ज्वर-नाशक तथा रक्तशोधक मानी जाती है। इसकी छोटी-बड़ी
छाल-आबनूस
आदि बनाने में किया जाता है। औषधि के रूप में इसकी छाल, फल, बीज तथा पुष्प का उपयोग किया जाता है। इसकी छाल का लेप फोड़ों पर किया जाता है तथा रक्त स्राव होने
छाल-शरीफा
है और दक्षिण भारत में अपने आप भी उग आता है इसका पेड़ छोटा और तना साफ और छाल हल्के नीले रंग की होती है। इसे सीताफल कहा जाता है क्योंकि वनवास के दौरान
छाल-प्राजक्ता
आर्बोर्ट्रिस्टिस' है। पारिजात पर सुन्दर व सुगन्धित फूल लगते हैं। इसके फूल, पत्ते और छाल का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। यह पूरे भारत में पैदा होता है। यह
छाल-जामुन
से पेट साफ होता है। पेट के अंदर ऐंठन की समस्या दूर करने के लिए जामुन की छाल का काढा बनाकर पीने से दूर हो जाती है। जामुन हमारे शरीर के अंदर खून की कमी
छाल-भोजपत्र वृक्ष
एक वृक्ष है जो 4,500 m की ऊँचाई तक उगता है। यह बहूपयोगी वृक्ष है - इसका छाल सफेद रंग की होती है जो प्राचीन काल से ग्रंथों की रचना के लिये उपयोग में आती
छाल-कुटज
Wrightia antidysenterica) एक पादप है। इसके पौधे चार फुट से १० फुट तक ऊँचे तथा छाल आधे इंच तक मोटी होती है। पत्ते चार इंच से आठ इंच तक लंबे, शाखा पर आमने-सामने
छाल-मसाला
या संरक्षित करने के उद्देश्य से उसमें मिलाए जाने वाले सूखे बीज, फल, जड़, छाल, या सब्जियों को मसाला (spice) कहते हैं। कभी-कभी मसाले का प्रयोग दूसरे स्वाद
छाल-गिलोय
लड़ने एवं रोग प्रतिरोधक क्षमताा बढ़ाने कियााा जाता हैl बेल के काण्ड की ऊपरी छाल बहुत पतली, भूरे या धूसर वर्ण की होती है, जिसे हटा देने पर भीतर का हरित मांसल
छाल-भोजपत्र
यूरोप, एशिया तथा उत्तरी अमेरिका में उगने वाले अनेक प्रकार के भूर्जवृक्षों की छाल को भोजपत्र (Birch bark या birchbark) कहते हैं। प्राचीन काल में इसका उपयोग
छाल-बिरहोर
जीवन यापन करने के लिए कृषि के साथ - साथ बांस व मोहलाईन (नार वाले पौधे) की छाल व रस्सी से टोकरी आदि सामान बना कर बेचा करते है। "The Birhor" नामक पुस्तक
छाल-रेशा
कृत्रिम पदार्थों के बने पतले तंतु को कहते हैं। यह ऊन, कपास, कागज़, पेड़ों की छाल, पॉलिएस्टर और कई अन्य सामग्रियों के हो सकते हैं। आम तौर पर पतले तंतु को ही
छाल-काष्ठीय पौधा
मज़बूत बने हुए होते हैं। अक्सर इनके मुख्य तनों, बड़ी टहनियों व जड़ों के ऊपर छाल लगी हुई होती है। काष्ठ एक कोशिकीय अनुकूलन है जिसकी मदद से काष्ठीय वनस्पति
छाल-सप्तपर्णी
विद्वान एक चमकदार पेड़ है और 40 मीटर (130 फीट) लंबा तक बढ़ता है। इसकी परिपक्व छाल भूरे रंग की होती है और इसकी युवा शाखाएं मसूर के साथ बहुतायत से चिह्नित होती
छाल-फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान
सामान्यतः हिमाच्छादित रहती है। जुलाई एवं अगस्त माह के दौरान एल्पाइन जड़ी की छाल की पंखुडियों में रंग छिपे रहते हैं। यहाँ सामान्यतः पाये जाने वाले फूलों के
छाल-तेन्दु
झारखण्ड में 'केन्दु' कहते हैं। इसकी पत्तियाँ बीड़ी बनाने के काम आती हैं। इसकी छाल बहुत कठोर व सूखी होती है। इसे जलाने पर चिनगारी तथा आवाज निकलती हैं। यह वृझ
छाल-गुर्दा
संरचनाएं, छाल से लेकर मज्जा तक फैली होती हैं। एक नेफ्रॉन का प्रारंभिक शुद्धिकरण भाग छाल में स्थित वृक्कीय कणिका (renal corpuscle) होता है, जिसके बाद छाल से होकर
छाल-काफल
में इस पर लगने वाले फल पहाड़ी इलाकों में विशेष रूप से लोकप्रिय हैं। इसकी छाल का प्रयोग चर्मशोधन (टैंनिंग) के लिए किया जाता है। काफल का फल गर्मी में शरीर
छाल-नीलगिरी (यूकलिप्टस)
गोंद के पेड़ के रूप में भी जाने जाते हैं, क्योंकि बहुत सारी प्रजातियों में छाल के कहीं से छील जाने पर ये प्रचुर मात्रा में राल (जैसे कि, अपरिष्कृत गोंद)
छाल-कनेर (पीली)
शरीर की जलन को नष्ट करने वाला और विषैला होता है। इसकी छाल कड़वी भेदन व बुखार नाशक होती है। छाल की क्रिया बहुत ही तेज होती है, इसलिए इसे कम मात्रा में
छाल-अल्सर
व्रण या अल्सर मुंह के छाले: माउथ अल्सर पैप्टिक अल्सर: आंत के छाले आंख के छाले:कॉर्नियल अल्सर गुप्तांग के छाले:जेनिटल अल्सर
छाल-अगर (वृक्ष)
से लेकर २.५ मीटर तक होती है। अगर वृक्ष के तने की छाल भोज पत्र के समान पतली होती है। इसीलिए इसकी छाल का उपयोग एक लम्बे समय तक भोज पत्र के समान धार्मिक
छाल-त्वचा रोगों की सूची
त्वचाशोथ घमौरी दाद खाज (स्कैबी) सफेद दाग कुष्ट रोग मुंहासे फोड़ा फुंसी रूसी गंजापन एड़ियों की बिवाई छाजन छाल रोग (सारिआसिस) त्वचा का रंग बदलना रोगों की सूची
छाल-इंग्लिश विलो
लम्बे होते हैं, जिनका तना 1 मीटर व्यास का और शीर्ष अक्सर झुका हुआ होता है। छाल भूरे-स्लेटी रंग की होती है जो पुराने पेड़ों में गहरी दरार युक्त होती है।
छाल-सोरियासिस संधिशोथ
सोरियासिस संधिशोथ (Psoriatic arthritis) एक दीर्घकालिक गठिया है जो छाल रोग (सोरायसिस) नामक स्वप्रतिरक्षित रोग (ऑटोइम्यून रोग) से प्रभावित लोगों में होता
छाल-लोध्र
एक आयुर्वेदिक औषधीय वनस्पति है। लोध् के पेड़ मध्यम आकार के होते हैं। इसकी छाल पतली तथा छिलकेदार होती है। इसके फूल सफेद और हल्के पीले रंग के तथा सुगन्धित
छाल-क्विनाइन
3H2O तिक्त उत्फुल्ल क्रिस्टलीय ऐल्केनाइड ग.५७° से. जल में विलेय सिंकोना की छाल से प्राप्त इसे ७-हाइड्रॉक्सी आइसोक्विनोलीन से संश्लेषित किया जा सकता है।
छाल-बहेड़ा
फैले हुए और लंबे होते हैं। इसके पेड़ 18 से 30 मीटर तक ऊंचे होते हैं जिसकी छाल लगभग 2 सेंटीमीटर मोटी होती है। इसके पेड़ पहाडों और ऊंची भूमि में अधिक मात्रा
छाल-इमली
रूप से क्रियान्वयन और मांसपेशियों के विकास में मदद करता है। 11 इमली की की छाल का पेस्ट बनाकर चेहरे पर लगाने से चेहर की झाइयां धीरे-धीरे कम होने लगती हैं।
छाल-इतिहासकार
पाण्डुलिपियाँ प्रायः ताड़पत्रों अथवा हिमालय क्षेत्र में उगने वाले भूर्ज नामक पेड़ की छाल से विशेष तरीके से तैयार भोजपत्र पर लिखी मिलती हैं। इसके अतिरिक्त अन्य कई
छाल-करमा (वृक्ष)
ऊँचा हो सकता है। इसके फूल गोल-गोल होते हैं। यह पतझड़ वाला वृक्ष है। इसकी छाल एन्टिसेप्टिक होती है, तना सफेदी लिये हुए होता है, पत्तियाँ लगभग वृत्ताकार
छाल-शतपाद
कनखजूरा) एक स्थलवासी आर्थ्रोपोडा है जो जमीन में, बिलों में या पेड़ों की छाल के नीचे छिपे पाये जाते हैं। इसका शरीर लंबा एवं खंडयुक्त होता है तथा सिर पर
छाल-महुआ
बलबंधक, वात, पित्त, तृपा, दाह, श्वास, क्षयी आदि को दूर करनेवाला माना है। छाल रक्तपितनाशक और व्रणशोधक मानी जाती है। इसके तेल को कफ, पित्त और दाहनाशक और
छाल-कुंबी
लकड़ी प्राप्त होती है। कुंबी का छाल रेशेदार होती है जिसका उपयोग भूरे कागज और घटिया जहाजी रस्सों के बनाने में होता है। इसकी छाल ठंड में शामक के रूप में दी जाती
छाल-चिरौंजी
ज्वर का शमन करने वाला होता है। इस वृक्ष के फल की गुठली से निकली मींगी और छाल दोनों मानवीय उपयोगी होती है। चिरौंजी का उपयोग अधिकतर मिठाई में जैसे हलवा
छाल-पलाश
का काम देती है। छाल से एक प्रकार का रेशा निकलता है जिसको जहाज के पटरों की दरारों में भरकर भीतर पानी आने की रोक की जाती है। जड़ की छाल से जो रेशा निकलता
छाल-नावेद असलम
जिन्हें मुख्यतः 1990 में सोनी टीवी पर जारी मेडिकल ड्रामा हॉस्पिटल तथा फ़िल्म छाल (2002) एवं सेहर (2005) में अभिनय के लिए जाना जाता है। उन्होंने विभिन्न नाटकों
छाल-मॉल्डोवा
उत्सव में छोटे-छोटे सामान, बैगेल और चाय का एक सेट रूसी पारंपरिक जूते सन्टी छाल या लिंडेन (बास्ट जूते) से बने, और एक रूसी स्टोव पर बैगेल पारंपरिक त्योहार
छाल-ऐडुकला धरमजयगढ मण्डल
नवापारा रोड पर जाना पड़ता है फिर पानी गाव जाते हुए एदुकला पड़ता है।इसके अलावा छाल से नवापारा रोड होते हुए बोजिआ हौते जाना पड़ता है फिर कटैपाली से होते हुए
छाल-अरण्यकाण्ड
शिकायत की। रावण ने बदला लेने के लिये मारीच को स्वर्णमृग बना कर भेजा जिसकी छाल की मांग सीता ने राम से की। लक्ष्मण को सीता के रक्षा की आज्ञा दे कर राम स्वर्णमृग
छाल-सेमर
पवित्र प्रतीक है। सेमल की पत्तियाँ (कोलकाता में) सेमर का फल (कोलकाता) सेमर की छाल (कोलकाता) जड़ें (Buttress roots) Cortex फल सबसे बड़ा ज्ञात सेमर का नमूना
छाल-आत्मप्रवंचना
प्रकार आत्मप्रवंचना का अर्थ एक ऐसी मनोदशा से है जिसमें व्यक्ति स्वयं के साथ छाल करता है| व्यक्ति अपने चारों ओर एक प्रकार का इंद्रजाल या काल्पनिक अवधारणाए
छाल-मुंह में अल्सर
मुँह का छाला एक दर्दनाक घाव होता है जो आपके मुँह के अंदर कहीं भी हो सकता है। ये घाव अक्सर लाल, पीले या सफेद रंग के होते हैं, और आपको एक या कई छाले हो सकते
छाल-आइनू लोग
माना जाता था। इसका रंग भूर्ज की छाल जलाकर मिली कालिख से बनाया जाता था। स्त्री और पुरुष ऍल्म के वृक्ष की अंदरूनी छाल के रेशों से बने बड़े लपेटने वाले
छाल-चीड़
जैसा हो जाता है। इनकी कुछ जातियों में एक से अध्कि मुख्य तने पाए जाते हैं। छाल साधारणतय मोटी और खुरदरी होती है, परंतु कुछ जातियों में पतली भी होती है। इनमें
छाल-बबूल
India Vachellia nilotica, at village Chaparr Chirri, Mohali, Punjab, India छाल ILDIS LegumeWeb > [http://www.cfilt.iitb.ac.in/~corpus/hindi/find.php
छाल-छोटी माता
उपचार: स्वर्णमक्षिक भस्म: 120 मिलीग्राम स्वर्णमक्षिक भस्म कान्च्नेर पेड़ की छाल के अर्क के साथ सुबह और शाम लेने से चिकन पॉक्स से राहत मिलती है। इंदुकला वटी:
छाल-मीठा इन्द्रजौ
प्रकार की सुगंध होती है जो काले पौधे के फूलों में नहीं होती। श्वेत पौधे की छाल लाल रंग लिए बादामी तथा चिकनी होती है। फलियों के अंत में बालों का गुच्छा सा
छाल-भारतीय मसालों की सूची
में भी किया जा रहा है। भारतीय मसालों का उपयोग सूखे बीज, पत्तियों, फूलों, छाल, जड़ों, फलों के रूप में किया जाता है और कुछ मसालों को पीसकर पाउडर के रूप
छाल-कलमकारी
चित्रकारी करने के लिए विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक पौधों, पत्तियों, पेड़ों की छाल, तनों आदि का उपयोग किया जाता है। भारत में क़लमकारी के दो रूप प्रधान रूप से
छाल-वृक्षमिति
आयामों का मापन करा जाता है। इसमें वृक्षों की आयु, लम्बाई, चौड़ाई, व्यास, छाल की मोटाई, जड़ों का फैलाव, लकड़ी का धनत्व, इत्यादि शामिल हैं। वृक्षविज्ञान
छाल-अधिपादप
होते हैं लेकिन परजीवी नहीं होते। ये वृक्षों के तने, शाखाएं, दरारों, कोटरों, छाल आदि में उपस्थित मिट्टी में उपज जाते हैं व उसी में अपनी जड़ें चिपका कर रखते
छाल-वृक्षारोपण
प्राप्ति होती है, जो हमें जीवित रखने के लिए बहुत आवश्यक है। कई पेड़-पौधों की छाल औषधि बनाने के भी काम आती है। इनकी लकड़ियों से फर्नीचर बनाए जाते हैं। पेड़ों
छाल-गूलर
करने वाला है कफपित्त, अतिसार तथा योनि रोग को नष्ट करने वाला है। गूलर की छाल - अत्यंत शीतल, दुग्धवर्धक, कसैली, गर्भहितकारी और वर्णविनाशक है। कोमल फल-
छाल-रंग
किया गया रंग चढ़ाया गया था। हजारों वर्षों तक मजीठ की जड़ और बक्कम वृक्ष की छाल लाल रंग का मुख्य स्रोत थी। पीपल, गूलर और पाकड़ जैसे वृक्षों पर लगने वाली
छाल-शैवाल
इत्यादि रचनाएं नहीं पाई जाती हैं। ये नम भूमि, अलवणीय एवं लवणीय जल, वृक्षों की छाल, नम दीवारों पर हरी, भूरी या कुछ काली परतों के रूप में मिलते हैं। इस के अध्ययन
छाल-होड़ोपैथी
आदिवासियों ने जंगलों में फलने फूलने वाले पेड़-पौधे की पत्तियां, तने, जड़, छाल और फल-फूल से मलेरिया और कालाजार जैसी बीमारी के उपचार के लिए औषधि की खोज की।
छाल-कदंब वृक्ष
में से इत्र निकाला जाता है। औरतें इनसे अपना शृंगार करती हैं। ईसकी पत्ती,छाल,फल समान मात्रा में लेकर काढा पीने से टाईप २ डायाबिटीज ठीक होता है। "Neolamarckia
छाल-बोरो
करते हैं। परंतु मुख्य रूप से इनकी निर्भरता कृषि पर है। इनके कपड़े पेड़ों की छाल से बने होते हैं। ये लोग होठों पर रंग का लेप करते हैं। कान में लकड़ी के एरन(Lobe)
छाल-शंखपुष्पी
जैसी मोटी 1-1 इंच लंबी होती है। सिरे पर चौड़ी व नीचे सकरी होती है। अंदर की छाल और लकड़ी के बीच से दूध जैसा रस निकलता है, जिसकी गंध ताजे तेल जैसी दाहक व
छाल-आहुति
कमल-गट्टा २ भाग, मजीठ ३ भाग, बनकचूर २ भाग, दालचीनी २ भाग, गूलर की छाल सूखी ५ भाग, तेज बल (छाल और जड़) २ भाग, शंख पुष्पी १ भाग, चिरायता २ भाग, खस २ भाग, गोखरू
छाल-खिरनी
छोटे फल लगते हैं, जो खाने में काफी मीठे और स्वादिष्ठ होते हैं। वृक्ष की छाल औषधि के कार्य में आती है। बीज से तेल निकाला जाता है। इसकी लकड़ी बहुत मजबूत
छाल-अरण्यतुलसी
americanum) का पौधा ऊँचाई में आठ फुट तक, सीधा और डालियों से भरा होता है। छाल खाकी, पत्ते चार इंच तक लंबे और दोनों ओर चिकने होते हैं। यह बंगाल, नेपाल,
छाल-काढ़ा
—जामुन, सेमर, खिरनी, मोलसिरी ओर बेर का कषाय 'पंचकषाय' कहलाता है। यह कषाय छाल को पानी में भिगोकर निकाला जाता है और दुर्गा के पूजन में काम आता है। कषाय
छाल-भित्ति चित्र
से ही बनाया जाता है, जैसे- हल्दी, केले के पत्ते, लाल रंग के लिऐ पीपल की छाल प्रयोग किया जाता है। और दूध। भित्ति चित्रों के अलावा अल्पना का भी बिहार में
छाल-कचनार
दोनों के गुणसादृश्य एवं रूपसादृश्य हो सकते हैं। चिकित्सा में इनके पुष्प तथा छाल का उपयोग होता है। कचनार कषाय, शीतवीर्य और कफ, पित्त, कृमि, कुष्ठ, गुदभ्रंश
छाल-हाँगी
न्यूज़ीलैड के उपनिवेश बनने और धातुओं और तार की शुरूआत से पहले, खाने को पेड़ों की छाल, बड़ी पत्तियों और अन्य वनस्पतियों के बीच लपेट कर रखा जाता था। 19 वीं शताब्दी
छाल-जंगल जलेबी
थायामिन, रिबोफ्लेविन आदि तत्व भरपूर मात्र में पाए जाते हैं. इसके पेड की छाल के काढे से पेचिश का इलाज किया जाता है. त्वचा रोगों, मधुमेह और आँख के जलन
छाल-धना जीरू
रसोइये इसमें कई अन्य मसाले जैसे लाल मिर्च पाउडर, कैसिया के पत्ते, दालचीनी की छाल और काली मिर्च मिलाते हैं, जिससे मिश्रण कुछ हद तक गरम मसाले के समान हो जाता
छाल-सर्पगन्धा
नहीं होती है। सर्पगन्धा की पत्ती एक सरल पत्ती का उदाहरण है। इसका तना मोटी छाल से ढका रहता है। इसके फूल गुलाबी या सफेद रंग के होते हैं। ये गुच्छों में पाए
छाल-रैमी
हैं। इन फीतों में रेशे के अतिरिक्त छाल और चिपकनेवाला पदार्थ (गोंद) रहता है। चीन में पौधों को सुखाने के पहले ही छाल और गोंद जितना निकल सकता है, निकाल लेते
छाल-विजयसार
साल, बीजा, मुर्गा लकड़ी, पैसार आदि नामों से भी जाना जाता है। इस वृक्ष के छाल को कुरेदने पर या काटने पर एक लाल रंग के तरल का स्राव होता है। यह स्राव रक्त
छाल-मुंहपका-खुरपका रोग
दाने से उभर आते हैं, फिर धीरे-धीरे ये दाने आपस में मिलकर बड़ा छाला बनाते हैं। समय पाकर यह छाले फल जाते हैं और उनमें जख्म हो जाता है। ऐसी स्थिति में पशु जुगाली
छाल-मालकांगनी
पत्तियों का रस अफीम विषाक्तता में प्रतिकारक के रूप में प्रयुक्त होता है। इसका छाल गर्भस्रावक है। इसके बीज तिक्त, रेचक, वामक तथा बल्य होते हैं। ये आमवात, गठिया
छाल-नबी
रहा करते थे और जनता के दानों से जीविका चलाते थे, दूसरे नबी गृहस्थ थे। वे छाल का लबादा पहना करते थे। उनके शरीर पर क्षतचिह्न स्पष्ट रूप से दिखाई दिया करते
छाल-पाण्डुलिपि
कागज़ को उपयोग करने से बहुत पहले पुस्तक को ताङ के पत्तों या भोज वृक्ष की छाल पर लिखा जाता है इन पुस्तकों को पाङुलिपिया कहते है पाण्डुलिपिविज्ञान पाण्डुलिपियों
छाल-सागौन
साधारणतया १०० से १५० फुट ऊँचे और धड़ ३ से ८ फुट व्यास के होते हैं। धड़ की छाल आधा इंच मोटी, धूसर या भूरे रंग की होती है। इनका रसकाष्ठ सफेद और अंत:काष्ठ
छाल-अगस्ति
क्षेत्र का निवासी है लेकिन अब भारत और श्रीलंका में भी उगाया जाता है। इसकी छाल, फूल और जड़ को आयुर्वेद और कई अन्य पारम्परिक चिकित्सा प्रणालियों में रोग-निवारण
छाल-रामपत्री
है जो लुप्ति के कगार पर है। इसके पेड़ की लम्बाई २५ मीटर तक होती है। इसकी छाल हरा-काला तथा चिकनी होती है, कभी-कभी लाल भी होती है। इसे पुलाव और बिरयानी
छाल-नीलगिरी वृक्ष
प्रयुक्त होता है। इस वृक्ष से एक प्रकर का गोंद भी प्राप्त होता है। पेड़ो की छाल कागज बनाने और चमड़ा बनाने के काम में आती है। नीलगिरी के पौघे सामान्य मिट्टी
छाल-काग़ज़
ऐसा बनाया जाए जो हल्का और सस्ता हो। तब उसने भांग, शहतूत के पत्ते, पेड़ की छाल तथा अन्य तरह के रेशों से कागज़ का निर्माण किया। उसके बाद कागज़ का इस्तेमाल
छाल-लोरिस
पर चलते हैं। कुछ लोरिस जातियाँ केवल कीट खाती हैं जबकि अन्य फल, वृक्षों के छाल से निकलने वाला गोंद, पत्ते और घोंघे खाती हैं। मादा लोरिस पेड़ों पर घर बनाकर
छाल-इलायची
एक-चौथाई रह जाए, तो उतार लें। यह पानी पीने से उल्टियाँ बंद हो जाती हैं। छाले : मुँह में छाले हो जाने पर बड़ी इलायची को महीन पीसकर उसमें पिसी हुई मिश्री मिलाकर
छाल-सुआरेज़ बाओबाब
वृक्ष की ऊँचाई 25 मीटर (82.0 फीट) तक होती है। इसका आकार बेलनाकार होता है। छाल का रंग हल्का-भूरा होता है, जिसके नीचे एक प्रकाश-संश्लेषण करने वाली हरी परत
छाल-आँवला
भारत में जंगलों तथा बाग-बगीचों में होता है। इसकी ऊँचाई 20 से 25 फुट तक, छाल राख के रंग की, पत्ते इमली के पत्तों जैसे, किंतु कुछ बड़े तथा फूल पीले रंग
छाल-रामफल
कठोर दिखता है लेकिन अंदर से गुद्देदार और मुलायम होता है फल के अलावा इसकी छाल पत्तियों और जड़ भी काम में ली जाती है जिसे दवाइयां का अलग-अलग दवाइयां बनाने
छाल-हरिता
पृथ्वी के हर भाग में पाए जाते हैं। ये छाया तथा सर्वथा नम स्थानों में पेड़ की छाल, चट्टानों आदि पर उगते हैं। इनके मुख्य उदाहरण स्फैग्नम (Sphagnum), (जो यूरोप
छाल-साल (वृक्ष)
अम्लीय होता है और धूप तथा औषधि के रूप में प्रयोग होता है। तरुण वृक्षों की छाल में प्रास लाल और काले रंग का पदार्थ रंजक के काम आता है। बीज, जो वर्षा के
छाल-गुलमोहर
उत्तरी मेरीयाना द्वीप पर यह मार्च से जून के बीच खिलता है। बीजों की फलियाँ छाल फूल माली में ईंटों की मकान के सामने गुलमुहर गुलमोहर हवाई में मेक्सिको में
छाल-माडागास्कर बाओबाब
मीटर (16 से 65 फुट) तक होती है। इसका आकार बोतल-जैसा या बेलनाकार होता है। छाल का रंग हल्का-भूरा होता है और पत्तों के 5 से 7 भाग होते हैं जो नवम्बर से अप्रैल
छाल-विभज्योतक
"द्वितीयक वृद्धि" के लिए उत्तरदायी उत्तक है! यह कॉर्क कैम्बियन के रूप में छाल ( Bark ) के नीचे पाया जाता है। (iii) अन्तर्वेशी (intercalary meristem) किसी
छाल-नीम
अपेक्षाकृत सीधा और छोटा होता है और व्यास में 1.2 मीटर तक पहुँच सकता है। इसकी छाल कठोर, विदरित (दरारयुक्त) या शल्कीय होती है और इसका रंग सफेद-धूसर या लाल,
छाल-इंडियन (अमेरिका के आदिवासी)
शक्तियों में विश्वास तथा शामन लोगों का अस्तित्व पाया जाता है। वृक्षों की छाल का उपयोग इन समूहों की संस्कृति में मिलता है। इस सामग्री से छोटी छोटी नावें
छाल-कोहबर
नैसर्गिक रंगों का प्रयोग होता है, मसलन लाल, काला, पीला, सफेद रंग पेड़ की छाल व मिट्टी से बनाए जाते हैं। सफेद रंग के लिए दूधी मिट्टी का प्रयोग किया जाता
छाल-मदार
जाता है। आक के दूध का फाहा लगाने से मुँह का लक्वा सीधा हो जाता है। आक की छाल को पीस कर घी में भूने फिर चोट पर बाँधे तो चोट की सूजन दूर हो जाती है। तथा
छाल-करंज
नदी नालों के सन्निकट अधिक पाए जाते हैं। छाल धूसर वर्ण की और पत्तियाँ प्राय: अखंड और लंबाग्र होती हैं। ताजी छाल और काष्ठ से तथा मसलने पर पत्तियों से तीव्र
छाल-रेज़िन
(अंग्रेज़ी: resin) गोंद जैसा हाइड्रोकार्बन द्रव्य होता है जो वृक्षों की छाल और लकड़ी से निकलता है। अन्य पेड़ों की तुलना में चीड़ जैसे कोणधारी (कॉनिफ़ॅरस)
छाल-उत्सर्जन
उत्सर्जन-अंग या तंत्र नहीं होता है अतः पौधे अपने उत्सर्जी पदार्थ पत्तियों, छालों, फलों, बीजों के माध्यम से शरीर से निष्कासित कर देते हैं। प्राणियों में सभी
छाल-अरीठा
लगभग हरजगह भारतवर्ष में पाया जाता है। इसके पत्ते गूलर के पत्तों से बड़े, छाल भूरी तथा फल गुच्छों में होते हैं। इसकी दो जातियाँ हैं। पहली सापीन्दूस् मूकोरोस्सी
छाल-बीकानेर की जलवायु
है। साधारण तथा यहां 'खेजड़ा (शमी)' के वृक्ष बहुतायत में हैं। उसकी फलियां, छाल तथा पत्ते चौपाये खाते हैं। नीम, शीशम और पीपल के पेड़ भी यहां मिलते हैं। रेत
छाल-विडंग
बहुत पाया जाता है। बायविडंग की झाड़ी-बहुत विस्तार में बढ़ने वाली होती है । छाल-वातरन्ध्रों के कारण खुरदुरी होती है। टहनियाँ-लंबी, पतली, लचीली, गोल एवं लंबे
छाल-कुनैन
क्विनाइन से अलग एंटिएर्हाइमिक होता है। ये दक्षिण अमेरिकी पेड़ सिनकोना पौधै की छाल से प्राप्त होता है। इससे क्यूनीन नामक मलेरिया बुखार की दवा के निर्माण में
छाल-चन्द्रप्रभा वटी
नागरमोथा, चिरायता, गिलोय, देवदारु, हल्दी, अतीस, दारुहल्दी, पीपलामूल, चित्रकमूल-छाल, धनिया, बड़ी हरड़, बहेड़ा, आँवला, चव्य, वायविडंग, गजपीपल, छोटी पीपल, सोंठ
छाल-कृपि
एक वृक्ष के निचे दो शिशु रोते के हालत में हैं, और आस पास कमंडल और शेर के छाल के अलावा और कोई नहीं था, ऐसा प्रतीत हो रहा था कि ये किसी ऋषि मुनि कि कुटिया
छाल-गन्धर्व
अपने कौशल के लिये जाना जाता है। वह पेड़ों और फूलों से जुड़े हुए हैं तथा छाल और रस में भी वास करते हैं। वे एक अकेले तपस्वी को परेशान करते हैं। गंधर्व
छाल-ऐडनसोनिया
ऑस्ट्रेलिया में तत्रस्थ है। बाओबाब की छाल में ४०% तक नमी होती है और इस वजह से यह जलाने के काम नहीं आती परन्तु तने की भीतरी छाल फ़ाईबर जैसी होती है जिस से कागज
छाल-लाइकेन
के आधारों पर उगे हुए पाए जाते हैं। इन आधारों में वृक्षों की पत्तियाँ एवं छाल, प्राचीन दीवारें, भूतल, चट्टान और शिलाएँ मुख्य हैं। यद्यपि ये अधिकतर धवल
छाल-बालम खीरा
है। इसका फल पथरी की चिकित्सा में विशेष प्रयुक्त होता है। इसकी पत्तियाँ ,छाल ,पुष्प एवम जड़ भी औषधि के रूप में प्रयुक्त होती है। इसे पार्कों की शोभा बढ़ाने
छाल-फोनी बाओबाब
(16–66 फुट) की ऊँचाई रखता है। तना बोतल के आकार का होता है और इसे अपनी लाल छाल के कारण आसानी से पहचाना जा सकता है। पेड़ पर नवम्बर से अप्रैल तक चलने वाली
छाल-सहजन
उपयोग में लायी जातीं हैं। सहजन के लगभग सभी अंग (पत्ती, फूल, फल, बीज, डाली, छाल, जड़ें, बीज से प्राप्त तेल आदि) खाये जाते हैं। एशिया और अफ्रीका में कच्ची
छाल-सहज प्रतिरक्षा प्रणाली
के लिए एक भौतिक और रासायनिक बाधा के रूप में कार्य करना; त्वचा या पेड़ की छाल और रासायनिक उपायों जैसे कि रक्त में थक्के के कारक या पेड़ से छलनी जैसे रासायनिक
छाल-गटापारचा
का तापमान अच्छा होता है। बीज या धड़ की कलम से पेड़ उगाया जाता है। पेड़ की छाल को छेदने से आक्षीर निकलता है, पर मलाया में पेड़ों को काटकर धड़ में एक एक
छाल-ज़ा बाओबाब
होता है। इसका तन नीचे सबसे चौड़ा और ऊँचाई के साथ कम चौड़ा होता जाता है। छाल का रंग गुलाबी-भूरा होता है। पत्ते 5 से 8 उंगलियों वाले हस्ताकार होते हैं।
छाल-भैषज्य कल्पना
जैसे पोहा बनाते समय पानी मे भिगोकर रखने के बाद छौंक लगाया जाता हैl दही की छाली जल में मिलाकर मट्ठा बनाकर उसे शीत और हलका किया जाता हैl तीक्ष्ण आसव, अरिष्ट
छाल-पूर्वी भोटी भाषाएँ
जाती है न्येन - यह पूर्वी भूटान के काली पहाड़ी क्षेत्र में बोली जाती है छाली - यह पूर्वी भूटान के मोंगर ज़िले में बोली जाती है बुम्थंग - यह पूर्वी भूटान
छाल-स्क्लैटर मोनाल
५००-९,९०० फ़ीट) वाले शीतोष्ण शंकुधारी वन में आ जाते हैं। यह कन्द, मूल, बीज, छाल और पत्तियाँ खाते हैं। बर्डलाइफ़ इंटरनैशनल (२०१३). "Lophophorus sclateri"
छाल-पेरिएर बाओबाब
सकती है। यह सदाबहार वनों में पाया जाता है। इसका तना बेलनाकार होता है और छाल का रंग हलका-भूरा होता है। इसकी दो प्रकार की टहनियाँ होती हैं - हरी लम्बी
छाल-मलेरिया
उपचार सिनकोना वृक्ष की छाल से किया गया था जिसमें कुनैन पाई जाती है। यह वृक्ष पेरु देश में एण्डीज़ पर्वतों की ढलानों पर उगता है। इस छाल का प्रयोग स्थानीय लोग
छाल-कार्बनिक यौगिक
ओषधियाँ मलेरिया ज्वर दूर करने में बड़ी गुणकारी सिद्ध हुई हैं। सिनकोना की छाल से प्राप्त क्विनीन का नाम तो विख्यात है ही, इसका प्रचार अब भी बहुत है। १९२०
छाल-पॉइज़न आइवी
रहती हैं और इनके छाल चिथड़ेदार होते हैं; पॉइज़न आइवी की लताएं भूरे रंग की होती हैं जो अपने सहायक पेड़ों से जुड़ी रहती हैं और इनके छाल चिथड़ेदार नहीं होते
छाल-एसपरजिलस
समान तथा प्रकाशीय उपकरण को भी हानि पहुँचाता है। इसकी नाइजर जाति से मानव को छाले हो जाते हैं इसकी खोज १७२९ में इटली में हुई। इसकी लगभग २०० प्रजातियाँ है यादव
छाल-वॉम्बैट
तक चकोर आकार का होता है। वॉम्बैट शाकाहारी होते हैं और घास, पेड़-पौधों की छाल, छोटे पौधों और जड़ों से पेट भरते हैं। उनके काटने वाले दांत चूहों की तरह पैने
छाल-चर्वण
चलित है; इस के प्रमाण हैं कि उत्तरी यूरोपीय लोग 9,000 वर्ष पूर्व बर्च की छाल का टार चबाते थे। गाय और कुछ अन्य पशु, जिन्हें रोमंथक कहा जाता है, अधिक पोषक
छाल-बाल्सम
से १.५८६ है। इसमें बाल्सम एस्टर ५३ प्रतिशत से कम नहीं रहना चाहिए। पेड़ की छाल को झुलसाने के बाद बाल्सम निकलता है, जो तने में लपेटे कपड़ों में इकट्ठा होता
छाल-अकेसिया प्यकनंथा
प्रजातियों विवरण लिखा था जिसमें से प्रकार नमूना एकत्र। बबूल pycnantha की छाल इस परिसर के उत्पादन के लिए अपने व्यावसायिक खेती जिसके परिणामस्वरूप में किसी
छाल-फ्रेक्सिनस ऑर्नस
से कम तीन इंच का हो जाता है, तब जुलाई या अगस्त में भूमि के ऊपरवाले तने की छाल में केवल एक ओर प्रति दिन डेढ़ से दो इंच लंबी एक अनुप्रस्थ काट (incision)
छाल-सुनील दत्त
किनारे सभाओं को संबोधित करने के लिए दत्त ने भयानक गर्मी, पीलिया और पैरों के छाले पर काबू पाया। 1990 के दशक की शुरुआत में कुछ वर्षों के लिए उनका राजनीतिक करियर
छाल-कनक चम्पा
और सुगन्धित होने के कारण चमगादड़ इन फूलों की तरफ आकर्षित होते हैं। पत्ते, छाल चेचक और खुजली की दवा बनाने में इस्तेमाल होते हैं। इसके वृक्ष की लकड़ी से
छाल-बादाम
अष्ठिफल के रूप में जाने जाते हैं और उनमें एक बाह्य छिलका होता है तथा एक कठोर छाल के साथ अंदर एक बीज होता है। आमतौर पर बादाम बिना छिलके के ही मिलता है। इसका
छाल-अंगूर
सुखाने में सहायता करता है। अंगूर के रस के गरारे करने से मुँह के घावों एवं छालों में राहत मिलती है। एनीमिया में अंगूर से बढ़कर कोई दवा नहीं है। उल्टी आने
छाल-हिना
जिसे गरम पानी में मिलाकर रंग देने वाला लेप तैयार किया जा सकता है। इसपौधे की छाल तथा पत्तियाँ दवा में प्रयुक्त होती हैं। साँचा:Cite DNB Linnaeus dedicated
छाल-कलम बांधना
लिए आम या अन्य पौधे की पतली शाखा लेकर एक से डेढ़ इंच गोलाकार छिलका निकालो|छाल निकालें हुये जगह पर संजीवक लगाओ |अब उसी जगह गीला किया हुआ स्पग्रामाँस (काई)लगाकर
छाल-हरीतकी
नामों से जाना जाता है। हरड़ का वृक्ष 60 से 80 फुट तक ऊँचा होता है। इसकी छाल गहरे भूरे रंग की होती है, पत्ते आकार में वासा के पत्र के समान 7 से 20 सेण्टीमीटर
छाल-गुलाल
वैज्ञानिकों के अनुसार इसके लिए इमली के बीज, बेल और अनार के छिलके, यूकेलिप्टस की छाल, अमलतास की फली का गूदा, प्याज का उपरी छिलका, चुकन्दर, हल्दी आदि वानस्पतिक
छाल-क्रिप्टोगैम
इसका योग अत्यावश्यक है। यह एक बड़ा, लगभग 16,00 जातियों का गण है। ये पेड़ की छाल अथवा चट्टान पर अधिक उगते हैं तथा शैवाल और कवक दोनों से मिलकर बनते हैं। इनके
छाल-जलना (चिकित्सा)
नहीं होता। . शुष्क उष्मा से ऊतकविनाश, दाह (burn) और नम ऊष्मा से उत्पन्न छाला (cold burn) कहलाता है। गहराई और व्यापकता की दृष्टि से दाह विभिन्न प्रकार
छाल-सीलिएक रोग
जैसे कब्ज या दस्त बच्चों में कम वृद्धि अनीमिया ऐंठन वजन में गिरावट मुँह में छाले उलटी, मतली चिड़चिड़ापन हड्डी का दर्द हाथ-पैर में झुनझुनी त्वचा पर निशान सर
छाल-भारतीय पादप तथा वृक्ष
कंटीला वृक्ष है, जो उत्तर भारत में बहुत विस्तृत रूप से पाया जाता है। वृक्ष की छाल काली होती है, फल हरा, सफेद और कड़ा होता है, जिसे हाथी का सेब (Elephant apple)
छाल-कोलेस्टेरॉल
में आरोग्यवर्धिनी, पुनर्नवा मंडूर, त्रिफला, चन्द्रप्रभा वटी और अर्जुन की छाल के चूर्ण का काढ़ा बहुत लाभकारी होता है। अन्य नियंत्रक हाल में हुए अध्ययनों
छाल-पत्रंग
है। केरल और मध्य जावा द्वीप में इसके तने की लकड़ी के भीतरी भाग की हल्की छालों को अदरक, दालचीनी व लौंग के साथ मिलाकर पानी में घोलकर एक रोग-रोधक द्रव बनाने
छाल-अंकोल
में पाया जाता है। इसके तने की मोटाई 2.5 फुट होती है। तथा यह भूरे रंग की छाल से ढका रहता है। पुराने वृक्षों के तने तीक्ष्णाग्र होने से काँटेदार या कंटकीभूत
छाल-न्यूराप्टेरा
पाए जाते हैं। अंड़े पेड़ की छाल की दरारों में लंबे अंडनिक्षेपक (ovipositor) द्वारा घुसेड़ दिए जाते हैं। लार्वे ढीली छालों विशेषत: कोनिफर (conifer) में
छाल-बमा लोग
अब यह कम ही देखा जाता है। त्वचा को सौन्दर्यपूर्ण बनाने के लिए एक पेड़ की छाल को पीसकर उसका 'थनखा' नाम का उबटन चेहरे और हाथों-पैरों पर लगाया जाता है। यह
छाल-बीजक
चैत-वैशाख पूरे दो महीने तक रहती है। इसमें पेड़-पौधों के पुराने छाल तथा पत्तियाँ गिरते और नये छाल एवं पत्तियाँ आते हैं। अठारह भार वनस्पत्तियाँ इसी समय प्रफुल्लित
छाल-काई लुन
वे उपयोग करने के लिए सुविधाजनक भी नहीं थे। तशाई लून {काई लुन] ने पेड़ की छाल, भांग के अवशेष, कपड़े के चिथड़े, और मछली पकड़ने के जाल से कागज बनाने का विचार
छाल-गौर
मुख्य आहार घास पात तथा बाँस के नरम कल्ले हैं। पेड़ों की पत्तियों और कोमल छाल से भी इसे रुचि है। साधारणत: गवल परिवार में आठ या इस सदस्य होते हैं। ये सदस्य
छाल-चेचक
त्वचा में यह एक विशिष्ट दाने का परिणाम है और, बाद में, तरल पदार्थ से भरा छाले उठाया। वी। प्रमुख ने एक और अधिक गंभीर बीमारी का उत्पादन किया और ३०-३५ प्रतिशत
छाल-बैंगनी मेन्गोस्टीन
है। अमेरिकन कैंसर समाज भी साबित किया है कि मेन्गोस्टीन का रस, प्यूरी या छाल मानव में कैंसर के लिए एक इलाज के रूप में प्रभावी है। इसके अलावा इसमे रोधी
छाल-बकायन
किया जाता है । जोड़ो के दर्द निवारक के रूप में,बवासीर, नेत्ररोग, मुह के छाले, पेट मे दर्द, आँतो के कीड़े, प्रमेह, श्वेतप्रदर, खुजली, पेट के कीड़े आदि
छाल-चर्म रोग
कहते हैं। यह पता नहीं है कि इसको मकड़ी फलना क्यों कहते हैं। इसमें शरीर पर छाले पड़ जाते हैं और दर्द होता हैं। आयु के अनुसार ही पीड़ा का अनुभव होता है, अर्थात्
छाल-किष्किन्धाकाण्ड
शिकायत की। रावण ने बदला लेने के लिये मारीच को स्वर्णमृग बना कर भेजा जिसकी छाल की मांग सीता ने राम से की। लक्ष्मण को सीता के रक्षा की आज्ञा दे कर राम स्वर्णमृग
छाल-जापानी बौद्ध वास्तुकला
पसंद है, लगभग सभी संरचनाओं के लिए हमेशा विभिन्न रूपों (तख़्त, पुआल, पेड़ की छाल, आदि) में लकड़ी। पश्चिमी और कुछ चीनी वास्तुकला दोनों के विपरीत, कुछ विशिष्ट
छाल-भारत में अंगूर की खेती
भाग, शाखा, लता, उपशाखा या तना से 0.5 से.मी. चौडाई की छाल छल्ले के रूप में उतार ली जाती है. छाल कब उतारी जाये यह उद्देश्य पर निर्भर करता है. अधिक फल लेने
छाल-सीतामढ़ी
प्राय: शिवचरित्र से भरा रहता है। जैसे - 'उमाकर बर बाउरि छवि घटा, गला माल बघ छाल बसन तन बूढ़ बयल लटपटा'। विद्यापति रचित नचारियाँ खूब गाई जाती हैं। 'समदाउनि'
छाल-इतिहास
पूछताछ से गद्य में रचना प्रारंभ हुई। इस प्रकार के लेख खपड़ों, पत्थरों, छालों और कपड़ों पर मिलते हैं। कागज का आविष्कार होने से लेखन और पठन पाठन का मार्ग
छाल-रामायण
शिकायत की। रावण ने बदला लेने के लिये मारीच को स्वर्णमृग बना कर भेजा जिसकी छाल की मांग सीता ने राम से की। लक्ष्मण को सीता के रक्षा की आज्ञा दे कर राम स्वर्णमृग
छाल-कुवैत का वन्य जीव
क्रैब-प्लोवर्स भी शामिल हैं । निवासी पक्षियों में, सबसे सामान्य मरुभूमि की छाल है, और अंतर्देशीय केस्टेल और शॉर्ट-टेड स्नेक ईगल को रेगिस्तान पर शिकार करते
छाल-सेमल
हलका, स्निग्ध, पिच्छिल तथा शुक्र और कफ को बढ़ाने वाला कहा गया है। सेमल की छाल कसैली और कफनाशक; फूल शीतल, कड़वा, भारी, कसैला, वातकारक, मलरोधक, रूखा तथा
छाल-सिक्किम
के पश्चात बंद कर दिया गया था, प्राचीन रेशम मार्ग का एक हिस्सा था और ऊन, छाल और मसालों। मसाला के व्यापार में सहायक था। सिक्किम में कठिन भूक्षेत्र के कारण
छाल-पॆड और पौधो कॆ विष का उपयोग
करने के लिए किया जाता है। सेनेसियोसीन नामक विष का उपयोग मूँह और पेट के छालों को ठीक करने के लिये और, जोडो के दर्द को ठीक करने के लिए किया जाता है। हिस्टामीण
छाल-अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध'
आँखों वाले, पड़ा अंधेरे से है पाला। कलेजा किसने कब थामा, देख छिलते दिल का छाला।। हरिऔध जी ने विविध शैलियों को ग्रहण किया है। मुख्य रूप से उनके काव्य में
छाल-विटामिन
खराबी आदि। विटामिन बी2 -- वृद्धि का रुकना, धुधली दृष्टि का होना, जीभ पर छाले का पड़ जाना, असमय बुढ़ापा आना, प्रकाश न सह पाना आदि। विटामिन बी3 -- जीभ का
छाल-मधुबनी चित्रकला
से ही बनाया जाता है, जैसे- हल्दी, केले के पत्ते, लाल रंग के लिऐ पीपल की छाल प्रयोग किया जाता है। और दूध। भित्ति चित्रों के अलावा अल्पना का भी बिहार में
छाल-चिकित्सा
मनुष्य सूर्यप्रकाश, शुद्ध हवा, जल, अग्नि, मिट्टी, खनिज, वनस्पतियों की जड़, छाल, पत्ती आदि द्रव्यों से अनुभव के आधार पर चिकित्सा करता था। इनके गुणधर्म उसे
छाल-वेद
पुस्तकों को ताड़ के पेड़ के पत्तों पर लिखा जाता था। पांडुलिपि सामग्री (बर्च की छाल या ताड़ के पत्तों) की तात्कालिक प्रकृति के कारण, जीवित पांडुलिपियां शायद
छाल-थाइसेनोप्टेरा
झल्लरीपक्ष प्राय: शाकाराही होते है और फूलों के अंदर कोमल पत्तियों के गुच्छों पर, छाल के नीचे अथवा वृक्षफेन (galls) में पाए जाते हैं। ये फूल, फल, शाक, सब्जी तथा
छाल-खरक
में मासिक धर्म से सम्बंधित शिकायतों के लिए लाभदायक माना जाता है। वृक्ष की छाल से एक पीला रंग भी उपलब्ध होता है। इसकी लकड़ी सख़्त और टिकाऊ होती है और इसकी
छाल-बीकानेर
है। साधारण तथा यहाँ 'खेजड़ा (शमी)' के वृक्ष बहुतायत में हैं। उसकी फलियाँ, छाल तथा पत्ते चौपाये खाते हैं। नीम, शीशम और पीपल के पेड़ भी यहाँ मिलते हैं। रेत
छाल-परहित
वृक्ष है इसका छाल सफेद रंग की होती है जो प्राचीन काल से ग्रंथों की रचना के लिये उपयोग में आती थी। दरअसल,भोजपत्र भोज नाम के वृक्ष की छाल का नाम है, पत्ते
छाल-अयोध्याकाण्ड
शिकायत की। रावण ने बदला लेने के लिये मारीच को स्वर्णमृग बना कर भेजा जिसकी छाल की मांग सीता ने राम से की। लक्ष्मण को सीता के रक्षा की आज्ञा दे कर राम स्वर्णमृग
छाल-भांग का पौधा
थीं। भांग के पौधे का घर गढ़वाल में चांदपुर कहा जा सकता है। इसके पौधे की छाल से रस्सियाँ बनती हैं। डंठल कहीं-कहीं मशाल का काम देता है। पर्वतीय क्षेत्र
छाल-त्रिफला
आने की बीमारी, मुंह के छाले ठीक होंगे, अरूचि मिटेगी और मुख की दुर्गन्ध भी दूर होगी। त्रिफला, हल्दी, चिरायता, नीम के भीतर की छाल और गिलोय इन सबको मिला कर
छाल-ग्रेट हॉर्नबिल पक्षी
और दक्षिण पूर्व एशिया में पाये जाते है। ये मुख्य रूप से फल और वृक्षों के छाल भोजन के रूप में ग्रहण करते है। लेकिन छोटे स्तनधारी, सरीसृपों और पक्षियों
छाल-महाधनेश पक्षी
और दक्षिण पूर्व एशिया में पाये जाते है। ये मुख्य रूप से फल और वृक्षों के छाल भोजन के रूप में ग्रहण करते है। लेकिन छोटे स्तनधारी, सरीसृपों और पक्षियों
छाल-पादप प्रवर्धन
में १ से २ इंच तक तने पर, एक गोलाकार कटान बनाकर ऊपर की छाल सावधानीपूर्वक निकाल लेते हैं। छाल को हटाने के बाद उसपर गीली मिट्टी रखकर, उसे चारों तरफ से
छाल-जन्तुदंश
में सकोच होता है, जिससे पेट में ऐंठन, नाड़ीगति में तीव्रता अथवा चमड़े पर छाले निकल आते हैं। नाड़ीमूल के आक्रांत होने पर नाड़ीमंडल में दर्द उत्पन्न होता
छाल-नारियल का दूध
स्थानिक उपयोग में एंटी माइक्रोबियल गुण पाए जाते हैं। इसका प्रयोग मुंह के छालों को ठीक करने के लिए भी किया जाता है। चूहों पर किये गए एक अध्ययन में, दो नारियल
छाल-लोधा
शब्द से बना है जिसका अर्थ है ‘एक पेड़ की छाल’ जो कि रंगाई के काम आती है चुंकि ये लोग प्रारम्भ में इस पेड़ की छाल को बेच कर जीवन यापन करते थे इसलिये ये लोधा
छाल-सियाचिन हिमनद
गुलाब परिवार को अपने घरों में सजावट के रूप में विकसित करते हैं, और इसकी छाल का उपयोग पेओ चा (मक्खन चाय) में कुछ क्षेत्रों में हरी चाय की पत्तियों के
छाल-अफ़्रीका की प्राकृतिक वनस्पति एवं वन्य जीव
यहाँ के वृक्ष अपने आपको वातावरण के अनुसार बदल लेते हैं। इन वृक्षों की जड़ छालें मोटी होती हैं। इन विशेषताओं के कारण ये वृक्ष गर्मियों में भी हरे-भरे रहते
छाल-वैदा लोग
तीर्थ करते हैं। वैदाओं में विवाह की रीति बहुत सरल होती है। वधु एक वृक्ष-छाल की रस्सी बनाती है (जिसे 'दिया लनूवा' कहते हैं) और उसे वर की कमर में बाँध
छाल-टनकपुर
बाजार था। क्षेत्र के स्थानीय उत्पादों में इमारती लकड़ी, कत्था, पेड़ों की छाल, शहद और अन्य छोटे जंगली उत्पाद शामिल थे, जिनका व्यापार नवंबर और मई के बीच
छाल-नसवार
जलन भी पैदा करता है। सूरज और गर्मी से सूखे तंबाकू के पत्ते, चूना, पेड़ की छाल का राख और स्वाद और रंग को एक साथ मिलाया जाता है। पानी डाला कर मिश्रण का पेस्ट
छाल-रामानंद सेनगुप्ता
किये थे। उन्होंने 70 से अधिक फिल्मों में काम किया। डाकघर (बंगाली) बिंदुर छाले (बंगाली) कंकड़तीर घाट (बंगाली) व्यक्तिगत सहायक (बंगाली) बंधु (बंगाली) पार्थ
छाल-नाव
पहले अस्तित्व में आई या पानी पर तैरनेवाले सरपत, नरकुल आदि का बेड़ा। शायद छाल की डोंगियाँ और भी बाद में बनी और इसके बाद पशुओं के चमड़े के मशकों में हवा
छाल-क्लोरहेक्सिडिन ग्लूकोनेट
कम करने में मदद करता है। इससे मदद मिल सकती है: मुंह में संक्रमण, मुंह के छाले और मसूड़ों की बीमारी गले गले दांतों की देखभाल त्वचा में संक्रमण क्लोरहेक्सिडिन
छाल-कृंतक
सा बनाकर उसमें कीचड़ और टहनियों की सहायता से अपने घर बनाते हैं। पेड़ों की छाल खाने के काम में लाते हैं। कृंतकों में किसी अन्य प्राणी की शरीर रचना जलचारी
छाल-रोज़ेसी
होता है। इसके अनेक पौधे बगीचों में लगाए जाते हैं। क्विलेजा सैपोनेरिया की छाल से सैपोनिन निकाला जाता है। लिंडलिया का जायांग युक्तांडप तथा फल स्फोटी होता
छाल-ऍलोपैथी
तब लाया जाता है जब प्रति-उत्तेजक पदार्थों का उपयोग किया जाता है। पेट पर छाले से आंतों की जलन ठीक होती है। (एलोस + पाथोस) से, एलोपैथी आता है - एक ऐसा शब्द
छाल-सांयाजी झुला
बंद हुए और दोनों हाथो को अलग किये तो दोनों हाथ काले हो गए थे व हाथो में छाले हो गए थे। इन हाथो को देखकर राजा और प्रजा और ज्यादा अचंभित हुए। राणा जी से
छाल-दुर्लभ रोगों की सूची
Colic Pain कालीकपेन पेट का दर्द 10 Stomatits स्टोमेटेटिस मुख पाक /मुख के छाले 12 Piles पाइल्स अर्श या बवासीर 13 Jaundice जान्डीस पीलिया 1. Laryngitis -
छाल-विटामिन
विटामिन बी2 (राइबोफ्लेविन) - वृद्धि का रुकना, धुधली दृष्टि का होना, जीभ पर छाले का पड़ जाना, असमय बुढ़ापा आना, प्रकाश न सह पाना आदि। विटामिन बी3 (निआसिन)
छाल-रीसस बंदर
है। यह मुख्य तौर पर शाकाहारी है और मुख्य रूप से फल, बीज, जड़ें, कलियाँ, छाल और अनाज खाते हैं। शहरों में रहने वाले रीसस मकाक मानव भोजन और कचरा भी खाते