आप इस पृष्ठ के विषय से संबंधित एक लेख प्रकाशित करने की संभावना है, और / या इस क्षेत्र के लिए:
फ्रांस - चोली -एक सूचना और प्रचार प्लेटफ़ॉर्म.
मुक्त करने के लिए अपनी वेबसाइट के साथ सामग्री लिंक.
के शहरों चोली:
चोली
चोली-ब्रेजिअर
को ढ़कने, उन्हें अवलम्बन देने एवं उभारने का काम करता है। इसे हिन्दी में चोली और बांग्ला में वक्षबंधनी कहते हैं। स्पोर्ट्स ब्रा का आविष्कार 1975 में ग्लैमराइज
चोली-दाता चोली खुर्द गाँव, अतरौली (अलीगढ़)
निर्देशांक: 27°53′N 78°04′E / 27.89°N 78.06°E / 27.89; 78.06 दाता चोली खुर्द अतरौली, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है।
चोली-दाता चोली बुजुर्ग गाँव, अतरौली (अलीगढ़)
निर्देशांक: 27°53′N 78°04′E / 27.89°N 78.06°E / 27.89; 78.06 दाता चोली बुजुर्ग अतरौली, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है।
चोली-चोल राजवंश
चोल (तमिल - சோழர்) प्राचीन भारत का एक राजवंश था। दक्षिण भारत में और पास के अन्य देशों में तमिल चोल शासकों ने 9 वीं शताब्दी से 13 वीं शताब्दी के बीच एक
चोली-राजेन्द्र चोल प्रथम
राजेन्द्र प्रथम (1012 ई. - 1044 ई.) चोल राजवंश का सबसे महान शासक था। उसने अपनी महान विजयों द्वारा चोल साम्राज्य का विस्तार कर उसे दक्षिण भारत का सर्व
चोली-राजेन्द्र चोल २
राजेन्द्र चोल द्वितीय अपने बड़े भ्राता राजाधिराज चोल के उत्तराधिकारी थे। इनको कोप्पम के युद्ध में अपने भ्राता के संग याद किया जाता है, जहां इन्होंने पश्चिमी
चोली-राजाराज चोल १
राजाराज चोल दक्षिण भारत के चोल ध्रविड निषाद (जल क्षत्रिय)नौसेना राजवंश के महान सम्राट थे जिन्होंने ९८५ से १०१४ तक राज किया। उनके शासन में चोलों ने दक्षिण
चोली-कुलोत्तुंग चोल तृतीय
कुलोत्तुंग चोल तृतीय (१२०५-१२१८ ई.) चोल राज्य के वैभव के अपकर्षकाल का शासक था। इसने पहले तो पांड्यनरेश जटावर्मन कुलेश्वर को बुरी तरह पराजित किया था। बाद
चोली-कुलोत्तुंग चोल प्रथम
कुलोत्तुंग चोल प्रथम (१०७०-११२२ ई.) दक्षिण भारत के चोल राज्य का प्रख्यात शासक था। यह वेंगी के चालुक्यनरेश राजराज नरेंद्र (१०१९-१०६१ ई०) का पुत्र था और
चोली-महान जीवित चोल मंदिर
महान जीवित चोल मन्दिर (Great Living Chola Temples) भारत के तमिल नाडु राज्य में चोल साम्राज्य काल के कुछ हिन्दू मन्दिरों की सूची है जिन्हें यूनेस्को विश्व
चोली-चोला फाली
चोला फाली एक गुजराती व्यंजन है।
चोली-वीरराजेन्द्र चोल
वीरराजेंद्र चोल (1064 ई॰ - 1070 ई॰) दक्षिणी भारत के चक्रवर्ती सम्राट राजेन्द्र प्रथम का पुत्र था और अपने बड़े भाइयों राजाधिराज प्रथम और राजेन्द्र द्वितीय
चोली-अधिराजेन्द्र चोल
अधिराजेंद्र चोल चोल राजा वीरराजेंद्र चोल का पुत्र था, जो लगभग १०७० ई. में उसके मरने पर चोडमंडल का राजा हुआ। तीन वर्ष वह युवराज के पद पर रहा था और युवराज
चोली-कुलोत्तुंग चोल द्वितीय
कुलोत्तुंग चोल द्वितीय (११३३-११५० इ.) कुलोत्तुंग (प्रथम) का पौत्र और विक्रम चोल का पुत्र। इसका शासनकाल राजनीतिक दृष्टि से पूर्णत: शांति का था। इसकी ऐतिहासिक
चोली-विजयालय चोल
विजयालय चोल, चोल राजवंश द्वारा स्थापित तंजावुर राज्य के राजा थे। सेन, शैलेन्द्र (2013). A Textbook of Medieval Indian History (अंग्रेज़ी में). Primus Books
चोली-चॉल
चॉल (मराठी : चाळ) शहर मुम्बई में जगह की कमी और भीड़भाड़ के कारण एक खास तरह की बनाई गईं इमारतें हैं। ये इमारतें बहुमंजिला होती हैं , जिनमें एक-एक कमरे
चोली-राजेन्द्र चोल ३
राजेन्द्र चोल(चोळ) ३ चोल साम्राज्य के अंतिम शासक थे। राजेन्द्र ३ के बाद चोल साम्राज्य समाप्त हो गया
चोली-कुर्ती
है। माना जाता है कि यह शुंग काल के अंगरखा से आया है। कुर्ती और चोली में यह अंतर है कि चोली में कमर खुली रहती है। Singh, Dr Shatrujeet (2024). History of
चोली-चोल सेना
चोल सेना (तमिल: சோழர் படை) चोल साम्राज्य की संयुक्त सशस्त्र सेना थी जो दो अलग-अलग तमिल स्वर्ण युगों, संगम काल और मध्यकालीन युग के दौरान संगठित हुई थी।
चोली-तमिल नाडु का इतिहास
आरम्भिक चोल, पहली सदी से लेकर चौथी सदी तक सत्ता के मुख्य अधिपति रहे। इनमें सर्वप्रमुख नाम करिकाल चोल है. इसने अपने राज्य को कांचीपुरम् तक पहुँचाया। चोलों ने
चोली-कोरोमंडल तट
दक्षिण-पूर्वी तटरेखा को दिया गया नाम है। यह क्षेत्र चोल राजवंश द्वारा शासित रहा है। चोल क्षेत्र या मंडल को तमिल में चोल-मंडलम कहते थे। वहीं से पुर्तगालियों एवं फ्रेंच
चोली-पाण्ड्य राजवंश
प्रदेश का इतिहास प्रारंभ से ही मुख्य रूप से तीन राजवंशों का इतिहास रहा है- चोल, चेर और, पांड्य। इनमें से पांड्य राजवंश का अधिकार इस प्रदेश के दक्षिणी पूर्वी
चोली-कोचंगत चोल
कोचंगत चोल नायनमार तमिल नाडु में सन्त था। कोचंगत चोल - ६३ नायनमार
चोली-पुगल चोल
पुगल चोल नायनमार तमिल नाडु में सन्त था। पुगल चोल - ६३ नायनमार
चोली-सिख चोल
सिख चोल (पंजाबी: ਚੋਲਾ (गुरमुखी)) सिखों द्वारा पहना जाने वाला पारंपरिक परिधान है। यह एक मार्शल पोशाक है जो एक सिख योद्धा को आंदोलन की स्वतंत्रता देती
चोली-परान्तक प्रथम
சோழன்) (907-955) ने पांड्या वंश को पाने के लिए अठारह साल तक दक्षिण भारत में चोल साम्राज्य पर शासन किया। उनके पूर्वाधिकारी आदित्य प्रथम थे जबकि उत्तराधिकारी
चोली-ढाका टोपी
टोपी पड़ा है। इस कपड़े का प्रयोग एक प्रकार कि चोली बनाने में भी किया जाता है जिसे नेपाली में ढाका-को-चोलो कहते हैं। नेपाली टोपी का निर्माण सर्वप्रथम गणेश
चोली-चोल कला एवं स्थापत्य
दक्षिण भारत में चोल राजवंश का राज्यकाल (850 ई - 1250 ई) कला एवं स्थापत्य के सतत समृद्धि का युग था। चोल राजाओं ने अपनी विस्तृत विजयों से प्राप्त धन-सम्पदा
चोली-तिरुचिरापल्ली
है। यह कावेरी नदी से दक्षिण में बसा हुआ है। तिरुचिरापल्ली प्राचीन काल में चोल साम्राज्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। यह स्थान विशेष रूप से विभिन्न
चोली-मुक्तेश्वर
मशहूर है। ब्रह्मेश्वर मंदिर मुक्तेश्वर के धार्मिक स्थलों में से एक है जो कि चोली की जाली नामक चट्टान के समीप स्थित है। भगवान शिव जी को समर्पित यह मंदिर आस्था
चोली-कुंतल
विजय का उल्लेख है। राजकेसरी वर्मा राजेंद्र चोल के एक कुंतलेश्वर विजय का उल्लेख है। राजकेसरी वर्मा राजेंद्र चोल के एक अभिलेख में कुंतलाधिप के पराभव की चर्चा
चोली-चौल, रायगढ़
चौल (Chaul) भारत के महाराष्ट्र राज्य के रायगढ़ ज़िले में स्थित एक गाँव है। रायगढ़ ज़िला, महाराष्ट्र "RBS Visitors Guide India: Maharashtra Travel Guide
चोली-आदित्य प्रथम
विजयालय चोल के पुत्र आदित्य प्रथम (सी ८७० - सी ९०७ सीई) चोल राजा थे जिन्होंने पल्लवों पर विजय से चोल का प्रभुत्व बढ़ाया और पश्चिम गंग वंश पर कब्जा कर लिया
चोली-कर्नाटक का इतिहास
कर दिया। सोमेश्वर प्रथम ने चोलों के आक्रमण से बचने की सफलतापूर्वक कोशिश की। उसने कल्याण में अपनी राजधानी स्थापित की और चोल राजा राजाधिराज की कोप्पर में
चोली-तंजावूर जिला
नदी के नदीमुख (डेल्टा) में स्थित है और इसलिए इसकी भूमि बहुत उपजाऊ है। यह चोल साम्राज्य द्वारा निर्मित बृहदेश्वर मन्दिर और यहाँ पर विशेष शैली से बनने वाले
चोली-बृहदीश्वर मन्दिर
ने विश्व धरोहर घोषित किया है। इसका निर्माण 1003-1010 ई. के बीच चोल शासक प्रथम राजराज चोल ने करवाया था। उनके नाम पर इसे राजराजेश्वर मन्दिर का नाम भी दिया
चोली-सुन्दर चोल
सुंदर चोल के दो पुत्र थे।आदित्य करिक्लान और प्रनियां सेल्वन/अरुणमौली थे जिनका नाम बाद में राजाराज१ हुआ।
चोली-अकिलन्देश्वरी मन्दिर, तिरुवनैकवल
तिरुचिरापल्ली (त्रिची), तमिल नाडु में स्थित है। यह मंदिर आरंभिक चोल राजा, कोचेन्गनन चोल, ने १८०० वर्ष पूर्व निर्माण करवाया था। यह श्रीरंगम के श्रीरंगनाथस्वामी
चोली-तंजावूर
जाना जाता हैं। 850 ई. में चोल वंश ने मुथरयार प्रमुखों को पराजित करके तंजावर पर अधिकार किया और इसे अपने राज्य की राजधानी बनाया। चोल वंश ने 400 वर्ष से भी अधिक
चोली-आईसीसी ग्रैंड चोला चेन्नई
आईटीसी ग्रैंड चोला चेन्नई इंडिया का एक लक्ज़री होटल हैं। यह विश्व का सबसे बड़ा “लीड सर्टिफाइड” ग्रीन होटल हैं। यह भारत का भी रेनेसांस मुंबई कन्वेंशन सेंटर
चोली-साड़ी
लगभग 5 से 6 गज लम्बी बिना सिली हुए कपड़े का टुकड़ा होता है जो ब्लाउज़ या चोली और साया के ऊपर लपेटकर पहना जाता है। साड़ी पहनने के कई तरीके हैं जो भौगोलिक
चोली-चौली, गंगोलीहाट तहसील
चौली, गंगोलीहाट तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के पिथोरागढ जिले का एक गाँव है। उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर कुमाऊँ
चोली-करूर जिला
है। संगम काल के दौरान इस जगह को आनपोरूमई के नाम से जाना जाता था। इस जगह पर चोल राजाओं, मदुरै के नायक और अंग्रेजों ने सफलतापूर्वक यहां शासन किया। पौराणिक
चोली-आई टी सी ग्रैंड चोला होटल
दि आई टी सी ग्रैंड चोला, चेन्नई का पांच सितारा लक्ज़री वाला होटल है। मुंबई स्थित रिनेसंस और ग्रैंड हयात के बाद यह भारत का तीसरा सबसे बड़ा होटल है। इस होटल
चोली-गरबा
रंगीन वेश-भूषा पहने हुए गरबा और डांडिया का प्रदर्शन करते हैं। लडकियाँ चनिया-चोली पहनती हैं और साथ मे विविध प्रकार के आभूषण पहनती हैं, तथा लडके गुजराती केडिया
चोली-चेम्बरमबाक्कम झील
झील एक कृत्रिम झील है जिसका निर्माण राजेन्द्र प्रथम के करा था, जो राजाराज चोल १ के पुत्र थे। चेन्नई अड्यार नदी "Lonely Planet South India & Kerala," Isabella
चोली-चेर राजवंश
केरल के कुछ क्षेत्रों के पास केन्द्रित था। चेरों का शासन काल संगम साहित्य युग के पूर्व आरंभ हुआ था। इसी काल के उनके पड़ोसी शासक थे - चोल तथा पांड्य।
चोली-गुरु हरगोबिन्द
उन्होंने गुरु नानक देव जी के लिए एक बड़ा सा चोला (एक पहनने का वस्त्र) बनाया था जिसमे 52 कलियाँ थी ये चोला उन्होंने उनके बारे में सुनकर कि उनका शरीर थोडा
चोली-कोरोमंडल एक्स्प्रेस २८४१
पूर्व रेलवे क्षेत्र के अंतर्गत आता है। चोला राजवंश की जमीन को तमिल में चोलामंडलम कहा जाता है जिसका शाब्दिक अनुवाद “चोलो के दायरे” में होता है वहाँ से कोरोमंडल
चोली-मण्डलेश्वर
नर्मदा पर जल-विद्युत परियोजना व बांध का निर्माण हुआ है। यहां से समीप ही चोली नामक स्थान पर अत्यंत प्राचीन शिव-मंदिर है जहां पर बहुत भव्य शिव-लिंग स्थित
चोली-बृहदीश्वर मन्दिर, गंगैकोण्ड चोलपुरम
हिन्दू मन्दिर है। यह सन् 1035 में तत्कालीन चोल सम्राट राजेन्द्र चोल प्रथम द्वारा गंगैकोण्ड चोलपुरम को चोल साम्राज्य की राजधानी घोषित करने के अवसर पर स्थापित
चोली-सोमेश्वर प्रथम
बैठा। पिता का समृद्ध राज्य प्राप्त कर उसने दिग्विजय करने का निश्चय किया। चोल और परमार दोनों उसके शत्रु थे। पहले वह परमारों की ओर बढ़ा। राजा भोज धारा और
चोली-काकोरी काण्ड
रँग दे बसन्ती चोला.... हो मेरा रँग दे बसन्ती चोला.... माय! रँग दे बसन्ती चोला.... हो माय! रँग दे बसन्ती चोला.... मेरा रँग दे बसन्ती चोला.... राम प्रसाद
चोली-गंगईकोंडा चोलपुरम
यह मन्दिर का निर्माण राजा राज चोल के पुत्र राजेंद्र चोल द्वारा किया गया था।
चोली-इन्दिरा जोशी
एल्बम डांस विद मी से गीत राटो घांघरा जारी किया है। उसने फिल्म लूट में उधेरको चोली आइटम गाना भी गाया है। https://web.archive.org/web/20111226215849/http://www
चोली-जिंजी दुर्ग
किलों में से एक है। इसका निर्माण नौंवी शताब्दी में कराया गया था, जब यह चोल राजवंश के अधिकार में था, किन्तु यह किला आज जिस रूप में है वह विजय नगर के
चोली-गंगैकोण्ड चोलपुरम
के समीप स्थित एक ऐतिहासिक स्थल है। यह लगभग 1025 ई में राजेन्द्र चोल प्रथम के काल में चोल साम्राज्य की राजधानी बना, और फिर इसे 250 वर्षों तक यह गौरव प्राप्त
चोली-चातक
तरसाया, वैसे ही सृष्टि पर्यंत तू भी चोली बन बूंद बूंद पानी के लिए तरसती रहना। कहते हैं कि लड़की बैल के शाप से उसी समय चोली बन गई और पानी के लिए तरसने लगी।
चोली-सेम्बियान महादेवी
महादेवी गंडारादित्य चोल की पत्नी के रूप में 949 ई. - 957 ई. तक चोल साम्राज्य की रानी और साम्राज्ञी थीं। वह उत्तम चोल की माँ हैं। वह चोल साम्राज्य की सबसे
चोली-पोंनियिन सेलवन
उपन्यास अरुलमोज्हीवर्मन की कहानी का वर्णन करता है (जिसे बाद में राजराजा चोला के रूप में ताज पहनाया गया - तमिल इतिहास के महान राजाओं में से एक जिन्होंने
चोली-खरगोन ज़िला
पर ग्राम चोली बड़ा ही ऐतिहासिक ग्राम है यहाँ पांडव युगीन महादेव का मंदिर बड़ा गणपति और चौसठ योगिनीं मंदिर इसकी प्राचीनता को बयां करते है। चोली नामक स्थान
चोली-लहँगा
वर्गों की मुगल महिलाओं के लिए एक पसंदीदा पोशाक बन गया। लहंगे को कभी-कभी गागरा चोली या लंगा वोनी के निचले हिस्से के रूप में पहना जाता है। हिंदी में घाघरा ( कोंकन्नी
चोली-कोप्पम की लड़ाई
कोप्पम की लड़ाई मध्यकालीन चोल राजाओं राजाधिराजा चोल और राजेन्द्र चोल द्वितीय और चालुक्य राजा सोमेश्वर प्रथम के बीच १०५४ ईसा में या सेन के अनुसार १०५२ ईसा
चोली-महाराष्ट्र
पश्चिमी चालुक्य साम्राज्य और प्रभुत्व था चोल राजवंश.कई लड़ाइयों पश्चिमी चालुक्य साम्राज्य और राजा राजा चोल, राजेंद्र चोल, जयसिम्ह द्वितीय, सोमेश्वरा मैं और
चोली-पल्लव राजवंश
सिद्ध करने का प्रयत्न किया है। मणिमेखलै के आधार पर प्रथम पल्लव नरेश को एक चोल और एक नाग राजकन्या की सतति मानने का भी सुझाव रखा गया है। पल्लव नामकरण नाग-राज-कन्या
चोली-चेन्नई का इतिहास
केन्द्र रहा है। यह दक्षिण भारत के बहुत से महत्त्वपूर्ण राजवंशों यथा, पल्लव, चोल, पांड्य, एवं विजयनगर इत्यादि का केन्द्र बिन्दु रहा है। मयलापुर शहर जो अब
चोली-संगम काल
में उपलब्ध है। 600 ई.पू. से 300 ई.पू. के बीच की अवधि, तमिलकम में पांड्य, चोल और चेर के तीन तमिल राजवंशों और कुछ स्वतंत्र सरदारों, वेलिर का शासन था। संगम
चोली-तमिल राजवंश
आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल और ओडिशा पर शासन किया। इनमें पल्लव, पाण्ड्य, चोल और चेर शामिल हैं। तमिल नाडु के इतिहास के मध्यकाल में कई राज्यों का उत्थान
चोली-मेंहदीपुर बालाजी
पर्याप्त चोला चढ़ जाने पर भी बंद नहीं होती। इस प्रकार तीनों देवों की स्थापना हुई। विक्रमी-सम्वत् १९७९ में श्री महाराज ने अपना चोला बदला। उतारे हुए चोले को गाड़ियों
चोली-तिरुप्पुर
प्राचीन कोंगु नाडु क्षेत्र के एक हिस्से का भाग था, जहाँ पाण्ड्य राजवंश और चोल राजवंश का राज्य रहा है। आधुनिक काल में यह वस्त्र उद्योग का एक महत्वपूर्ण
चोली-चालुक्य राजवंश
कुलोत्तुंग नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ जो अपने जीवन के प्रारंभिक दिनों में चोल राजधानी में अपनी नानी तथा राजेंद्रचोल की रानी के पास रहा। सन् 1060 में राजराज
चोली-अर्धनारीश्वर
स्वरूप का इस अर्धनारीश्वर स्तोत्र द्वारा। ११वीं शताब्दी की चोल मूर्ति ११वीं शताब्दी की चोल मूर्ति अर्धनारीश्वर शृंगार (प्रदर्शन) अर्धनारीश्वर शृंगार (प्रदर्शन)
चोली-पूर्वी चालुक्य
लगभग ५०० वर्षों तक शासन किया। इसके बाद वेंगी राज्य चोल साम्राज्य में विलीन हो गया और ११८९ ई तक चोल साम्राज्य के संरक्षन में इस पर चालुक्य राजाओं ने शासन
चोली-गंडरादित्य
गण्डरादित्य चोल (तमिल : கண்டராதித்ய சோழன்) चोल शासक था जो अपन पिता परन्तक प्रथम की मृत्यु के बाद गद्दी पर बैठा। वह ९५५ ई में शासक बना।
चोली-ऐरावतेश्वर मंदिर
तमिलनाड़ु राज्य में कुंभकोणम के पास दारासुरम में स्थित है। 12वीं सदी में राजराजा चोल द्वितीय द्वारा निर्मित इस मंदिर को तंजावुर के बृहदीश्वर मंदिर तथा गांगेयकोंडा
चोली-पश्चिम भारतीय खाना
मीठा: बासुंदी • घेवर • हल्वासन • केरी नो रास • पुरन पोली • सुतार फेणी • चोला फाली • मठिया • सूनवाली • आलू भर्ता • चना दाल परांठा • चूरमा • दाल बाटी •
चोली-रॉयल संग्रहालय, तंजौर
तमिलनाडु का एक प्रमुख सांस्कृतिक केंद्र रहा है। इस संग्रहालय में पल्लव, चोल, पंड्या और नायक कालीन पाषाण प्रतिमाओं का संग्रह है। एक अन्य दीर्घा में तंजौर
चोली-शिलप्पदिकारम
जाता है। इसका शाब्दिक अर्थ है- नूपुर (पायल)की कहानी"। इस महाकाव्य की रचना चोल वंश के शासक सेन गुट्टुवन के भाई इलांगो आदिगल ने लगभग ईसा की दूसरी-तीसरी शताब्दी
चोली-कुंदवई
कुंदवई चोल राजा परातक (सुंदर चोल) की पुत्री थी। उनके दो भाई थे। बड़े भाई का नाम आदित्य था और एक भाई का नाम राजराज प्रथम था ।
चोली-जयनकोंडम
1025 ईसवी काल में चोल राजवंश में राजेन्द्र चोल प्रथम की राजधानी था, और 250 वर्षों तक उनकी राजधानी रहा। गंगैकोण्ड चोलपुरम राजेन्द्र चोल प्रथम अरियलूर ज़िला
चोली-बीकानेर की संस्कृति
कपड़े की धोती, बगलबंदी और फेटा काम में लाते हैं। स्त्रियो की पोशाक लहंगा, चोली और दुपट्टा है। मुसलमान औरतों की पोशाक चुस्त पाजामा, लम्बा कुरता और दुपट्टा
चोली-क्रान्तिवीर
गुस्सा रहती है और उसे गांव छोड़ने के लिए कहती है। प्रताप मुंबई आता है जहां वह चॉल मालिक, लक्ष्मीदास (परेश रावल) के बेटे अतुल (अतुल अग्निहोत्री) का जीवन बचाता
चोली-मन्नारगुडी
वीं शताब्दी के दौरान मध्यकालीन चोलों द्वारा एक अग्रहारम गांव के रूप में की गई थी। शहर पर बाद में चोल राजा राजाधिराज चोल (1018-1054 ईस्वी), विजयनगर साम्राज्य
चोली-लक्षद्वीप
आगमन के साथ यहाँ इस्लाम का प्रादुर्भाव हुआ। मध्ययुगीन में, इस क्षेत्र में चोल राजवंश और कैनानोर राजाओं का शासन था। कैथोलिक पुर्तगाली 1498 के आसपास यहाँ
चोली-जयसिंह द्वितीय (पश्चिमी चालुक्य)
चोल प्रथम की व्यस्तता से लाभ उठाकर जयसिंह ने सत्याश्रय के समय चालुक्यों के विजित प्रदेशों को चोलों से फिर से लेने के लिए और वेंगि के सिंहासन पर चोल राजकन्या
चोली-घाघरा नदी
बहने वाली एक नदी है। यह गंगा नदी की एक प्रमुख उपनदी है। घाघरा पहनने वाला चोला होता है इसी के नाम पर इसका नाम घाघरा पड़ा (एक किवदंती के अनुसार) घाघरा नदी
चोली-गंधरादित्य
(लगभग 956 ई.) से लेकर राजराज चोल प्रथम के राज्यारोहण (985 ई.) तक का चोल इतिहास अस्पष्ट और अस्त-व्यस्त है। इस अवधि में चोलों के वंशानुक्रम, तिथि एवं घटनाक्रम
चोली-विरुपाक्ष राय
यात्री फर्नाओ नुनिज़ द्वारा यह उल्लेख किया गया है कि विरुपाक्ष राय ने गोवा, चौल और दाभोल जैसे राज्य की बहुत सारी भूमि मुसलमानों को खो दी थी। नुनिज़ ने यह
चोली-तंजौर के दर्शनीय स्थल
इस मंदिर का निर्माण महान चोल राजा राजराज चोल ने करवाया था। यह मंदिर भारतीय शिल्प और वास्तु कला का अदभूत उदाहरण है। मंदिर के दो तरफ खाई है और एक ओर अनाईकट
चोली-मेलपाड़ी
प्राचीन नगर हुआ करता था और मेलपाड़ी राज्य चोल साम्राज्य और चालुक्य साम्राज्य के बीच स्थित एक राज्य था। राजाराज चोल १ के दादा का यहाँ देहांत हुआ था। वेल्लूर
चोली-आयिरथिल ओरुवन (2010 फ़िल्म)
में, राजेंद्र चोल तृतीय के वंशज और निर्वासन में चोल वंश के एक राजा। 1279 ई. में चोल वंश का पतन निश्चित प्रतीत होता है, क्योंकि पांड्य चोल लोगों को दक्षिण
चोली-दूत
की निपुणता ने क्रमशः जीवन्त रूप ग्रहण कर लिया। मौर्य, कुषाण, गुप्त, हर्ष, चोल, चालुक्य और पाण्ड्य आदि राजवंशों के शासन काल में दूत-पद्धति का उपयोग देशी
चोली-शैव
किया। (17) ऐलेरा के कैलाश मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूटों ने करवाया। (18) चोल शासक राजराज ( प्रथम ) ने तंजावूर में राजराजेश्वर या श्री बृहदेश्वर महादेव
चोली-मध्य प्रदेश
रूप से अपने पर्यटन के लिए भी जाना जाता है। मांडू, धार, महेश्वर मंडलेश्वर, चोली, भीमबैठका, पचमढी, खजुराहो, साँची स्तूप, ग्वालियर का किला, और उज्जैन रीवा
चोली-मूवेंडर
मुवेंडर ( तीन मुकुटधारी राजा ) चेर, चोल और पांड्य राजाओं को संदर्भित करता है जिन्होंने प्राचीन तमिलनाडु पर शासन किया था। उनमें से चेरों ने केरल और तमिलनाडु
चोली-फराह अब्राहम
प्रसारित हुआ। किम कार्दशियन स्टॉर्मी डैनियल्स पेज़ पेरिस हिल्टन चाइना "लहंगा-चोली पहनने पर अमेरिकन ऐक्ट्रेस फराह अब्राहम की खिंचाई". मूल से 24 नवंबर 2018 को
चोली-चकरी नृत्य
को करवाते थे खास विशेषता यह है कि इसमें महिलाओं द्वारा अस्सी कली का घाघरा चोली पहनकर कर सोलह सिंगार कर गोल गोल चक्कर लगाती है मगर उन्हें चक्कर नहीं आते
चोली-चित्रगुप्त मन्दिर
यह तमिलनाडु राज्य के कांचीपुरम शहर में बसा हैं। प्रमुख मन्दिर का निर्माण चोल राजवंश ने ९-वी शताब्दी में किया था और आगे कई लोंगोने इसका विस्तार किया।
चोली-पंचायत
और दसवीं शताब्दी के चोल और उत्तर मल्लूर शिलालेखों से पता चलता है कि दक्षिण में भी पंचायत व्यवस्था थी। ग्राम्य स्वशासन का विकास चोल शासन की मुख्य विशेषता
चोली-कोलारम्मा
कोलार शहर की प्रमुख देवी हैं। कोलारम्मा मंदिर एक हजार वर्ष पुराना है और इसे चोलों ने दक्षिण भारतीय शैली में बनवाया था। कोलार के लोग देवी पार्वती की पूजा कोलारम्मा
चोली-कर्नाटक
९९०-१२१० ई. के बीच चोल वंश ने अधिकार किया। अधिकरण की प्रक्रिया का आरंभ राजराज चोल १ (९८५-१०१४) ने आरंभ किया और ये काम उसके पुत्र राजेन्द्र चोल १ (१०१४-१०४४)
चोली-भारत इम्युनोलॉजिकल्स एंड बायोलॉजिकल्स कार्पोरेशन लिमिटेड, बुलन्दशहर
की स्थापना मार्च, 1989 में एक सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनी के रूप में गाँव चोला, जिला - बुलन्दशहर, उत्तरप्रदेश मे ओरल पोलियो वेक्सीन (ओ पी वी) तथा अन्य प्रतिरक्षात्मक
चोली-अपराजित वर्मन्
लगभग उसकी मृत्यु हुई। उसने पांडयराज वरबुण द्वितीय को परास्त किया, परंतु चोलों की सर्वग्रासी शक्ति ने पल्लवों को जीतकर तोंडमंडलम् पर अधिकार कर लिया और
चोली-सुभाष घई
1993 की रिलीज खलनायक में हिट गाने "नायक नहीं खलनायक हूं" और विवादास्पद "चोली के पीछे क्या है" शामिल थे। 1997 में, उन्होंने परदेस का निर्देशन किया जिसमें
चोली-पुष्पा इंपॉसिबल
वर्षीय महिला पुष्पा रंडेरिया पटेल अपने बच्चों अश्विन के साथ मुंबई के बापोदरा चॉल में रहती हैं, जो उनकी मंगेतर दीप्ति के अधीन एक कर्मचारी है; कॉलेज के छात्र
चोली-तिरुमुरै
११वें भाग का संकलन करैकल अम्मैयर, चेरामन पेरुमल और अन्य ने किया। समकालीन चोल राजा नंबी के काम से प्रभावित थे और उन्होंने ११वें तिरुमुरै में नंबी की कृतियों
चोली-आन्ध्र प्रदेश का इतिहास
काकतीय वंश के पतन के कारण दिल्ली के तुर्क साम्राज्यों, दक्षिण में चालुक्य चोल राजवंश (1070–1279) और मध्य भारत के पारसियो-ताजिक सल्तनत के बीच प्रतिस्पर्धा
चोली-हनुमान जयंती
इसी कारण उन्हें और उनके भक्तो को सिन्दूर चढ़ाना बहुत अच्छा लगता है जिसे चोला कहते है। संध्या के समय दक्षिण मुखी हनुमान मूर्ति के सामने शुद्ध होकर मन्त्र
चोली-शेम्बियन महादेवी
शेम्बियन महादेवी चोल राजा परान्तक के पुत्र गंदरादित्य की पत्नी थी।
चोली-श्रीलंका का इतिहास
उन्होंने पांड्यों के नगर मदुरै को लूट लिया। दसवीं सदी में चोलों का उदय हुआ और राजेन्द्र चोल प्रथम ने सबको दक्षिण-पूर्व की ओर खदेड़ दिया। पर १०५५ ईस्वी
चोली-तमिल संस्कृति
वास्तुकला की सबसे बड़ी उपलब्धियाँ महाबलीपुरम में रॉक-कट वाले मंदिर हैं। चोल शैली चोला राजाओं ने तंजावूर के बृहदेश्वर मंदिर और गंगायकोंडा चोलपुरम के बृहदेश्वर
चोली-भारत के विश्व धरोहर स्थल
गुफाएं, महाराष्ट्र एलोरा की गुफाएँ, महाराष्ट्र फतेहपुर सीकरी, उत्तर प्रदेश चोल मंदिर, तमिल नाडु हम्पी के स्मारक, कर्नाटक , तमिल नाडु पत्तदकल के स्मारक,
चोली-कांचीपुरम
से 45 मील दक्षिण पश्चिम में वेगवती नदी के किनार बसा है। कांचीपुरम प्राचीन चोल और पल्लव राजाओं की राजधानी थी। शहर के पश्चिम दिशा में स्थित यह मंदिर कांचीपुरम
चोली-कुण्डा देवी
कुण्डा देवी एक चोल साम्राज्य की रानी थीं इनके भाई राजराजा थे। Women in Indian life and society, page 49 South Indian Inscriptions – Vol II-Part 1 (Tanjore
चोली-पश्चिम गंग वंश
राजमल्ल चतुर्थ और उसके भाई रक्कस क्रमश: राजा हुए। रक्कस के समय १००४ ई. में चोलों ने तलकाड पर अधिकार कर लिया और गंगवंश का अंत हो गया। भारत का इतिहास दक्षिण
चोली-अनन्तवर्मन चोडगंग
वह राजराजा देववर्मन और राजसुन्दरी का पुत्र था। राजसुन्दरी, वीरराजेन्द्र चोल की पुत्री थी। ११वीं शताब्दी में पुरी के जगन्नाथ मन्दिर का पुनर्निर्माण, पुराने
चोली-परमानंद दास
पैंजनी रुनझुन बाजे, आंगन आंगन डोलना ॥ काजर तिलक कंठ कचुलामल, पीतांबर को चोलना। ‘परमानंद दास’ की जीवनी, गोपि झुलावत झोलना ॥ सिंह, डॉ॰राजकुमार (जनवरी २००७)
चोली-चिदंबरम मंदिर
वास्तुकार थे। मंदिर के इतिहास में कई जीर्णोद्धार हुए हैं, विशेषतः पल्लव/चोल शासकों के द्वारा प्राचीन एवम पूर्व मध्ययुगीन काल के दौरान. हिन्दू साहित्य
चोली-प्राणांतक प्रथम
देवेंद्र चक्रवती 8.कुञ्जरमल 9.शूरशूलामणि 10.वीरचोल। प्रथम सर्वसत्तासंपन्न चोल शासक परांतक प्रथम था। इसने वेल्लूर के युद्द में पांड्य एवं सिंहल राजाओं की
चोली-केरल की संस्कृति
थंबीजोम कहा जाता है, जो एक आम तमिल संस्कृति वाला क्षेत्र है, जहां चेरा, चोल और पंड्या राजवंशो का उत्थान हुआ। उस समय, केरल में पाया जाने वाला संगीत, नृत्य
चोली-पॉलीगोनेसी
पर्वसंधि (node) से लेकर दूसरी पर्वसंधि कुछ ऊँचाई तक घेरे रहता है। इसे नाल चोली अनुपर्ण कहते हैं और यह इस कुल की विशेषता है। पुष्पगुच्छ असीमाक्षी (racemoss)
चोली-अमझेरा की वीरांगना महारानी किसनावती
केशवदास राठौड़ जो महाराणा उदयसिंह की पुत्री से उत्पन्न थे, ने नर्मदा के तट पर चोली महेश्वर को अपनी राजधानी बनाकर बावन परगनों का राज्य स्थापित किया था। राव राम
चोली-हिन्दू संस्कार का इतिहास
गर्भाधान, 2. पुंसवन, 3. सीमंतोन्नयन, 4. जातकर्म, 5. नामकरण, 6. अन्न प्राशन, 7 चौल, 8. उपनयन, 9-12. वेदों के चार व्रत, 13. स्नान, 14. विवाह, 15-19 पंच दैनिक
चोली-चोलिस्तान
द्वारा बनाया गया देरावड़ क़िला भी चोलिस्तान के बहावलपुर क्षेत्र में खड़ा है। 'चोल' का अर्थ कई तुर्की भाषाओं में 'मरुभुमि' होता है। थर रेगिस्तान घग्गर-हकरा
चोली-उलटे हनुमान
श्रीराम, सीता, लक्ष्मणजी, शिव-पार्वती की मूर्तियाँ हैं। मंगलवार को हनुमानजी को चौला भी चढ़ाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि तीन मंगलवार, पाँच मंगलवार यहाँ दर्शन
चोली-किम जोंग उन
स्विट्ज़रलैंड के ही एक विद्यालय में पढ़ाई की थी। वह उस विद्यालय में "चोल-पक" या "पक-चोल" नाम से 1993 से लेकर 1998 तक था। जो एक शर्मीले लड़के व बास्केटबाल
चोली-पोन्नियिन सेल्वन: I
(அருள்மொழிவர்மன்) के शुरुआती दिनों की कहानी बताती है, जो बाद में महान चोल सम्राट राजाराज चोल १ (947 ई. - 1014 ई.) बना। पोन्नियिन सेलवन को मूल रूप से एक ही फिल्म
चोली-कडपा
, विजयनगर साम्राज्य और मैसूर साम्राज्य शामिल हैं। यह अपने मसालेदार व्यंजन के लिए भी जाना जाता है। ग्यारहवी से चौदवीं सदी तक कड़पा शहर रेनाटि
चोली-पोलोननरुवा
श्रीलंका के चुनिंदा आठ विश्व धरोहर स्थलों में से ये एक हैं। दक्षिण भारतीय चोल राजा और सिंहली विजयबाहू प्रथम, राजा परक्रामबाहू प्रथम और राजा निसानकम्ल्ला
चोली-पुदुच्चेरी (केन्द्र-शासित प्रदेश)
निर्माण १०वीं से १४वीं शताब्दी के बीच हुआ था। कहा जाता है कि १०वीं शताब्दी में चोल राजा परांतका प्रथम ने इस मंदिर को सोने से ढक दिया था जिसके बाद सूरज की रोशनी
चोली-नीतिशास्त्र (तेलुगु)
'नीतिशास्त्र' की रचना की। बद्देना के बारे में अधिक जानकारी का अभाव है। ऐसा माना जाता है कि वे एक चोल राजकुमार थे जिनको 'भद्र भूपाल' नाम से जाना जाता था। नीति
चोली-तंजावुर मराठा राज्य
व्यंकोजी राजवंश के संस्थापक थे। 15वीं शताब्दी (विशेष रूप से 1436 के आसपास) में चोल शासन के पतन के बाद, तंजावुर क्षेत्र पांड्यों के शासन में आया और फिर, मलिक
चोली-कीर्ति स्तम्भ
(शक संवत् 1444) उसके द्वारा एक कीर्तिस्तंभ स्थापित करने का उल्लेख हुआ है। चोल राजवंश के कुछ नरेशों ने अपनी विजयों के उपलक्ष्य में कीर्तिस्तंभ (विजयस्तंभ)
चोली-बंगाल की खाड़ी
खाड़ी" नाम से भी दिखाया गया है। १०वीं शताब्दी में चोल राजवंश के नेतृत्त्व में निर्मित ग्रन्थों में इसे चोल सरोवर नाम भी दिया गया है। कालांतर में इसे बंगाल
चोली-हरिहर राय द्वितीय
हरिहर द्वितीय ने 1378 में मुजाहिद बहमनी की मृत्यु का लाभ उठाया और गोवा, चौल और दाभोल जैसे बंदरगाहों को नियंत्रित करते हुए उत्तर पश्चिम में अपना नियंत्रण
चोली-भगत सिंह
तीनों मस्ती से गा रहे थे - मेरा रँग दे बसन्ती चोला, मेरा रँग दे। मेरा रँग दे बसन्ती चोला। माय रँग दे बसन्ती चोला॥ फाँसी के बाद कहीं कोई आन्दोलन न भड़क जाये
चोली-माय फार्च्यून,चेन्नई
सुविधा संपन्न होटल हैं जो चेन्नई के कैथेड्रल मार्ग पर स्थित हैं। पहले ये होटल चोला शेरटन के नाम से जाना जाता था एवं ये आईटीसी समूह के ब्रांड माय फार्च्यून का
चोली-भीलम
देवगिरि नमक शहर को बसाया था। भीलम ऐसा शक्तिशाली यादव नरेश था जिसने होयसल, चोल तथा चालुक्य राज्यों पर सफल आक्रमण किया था। उसके उत्तराधिकारी सिंघण ने इसे
चोली-लोबिया
बनाने के लिये भी प्रयोग में लाया जाता है। लोबिया एक प्रकार का बोड़ा है। इसे 'चौला' या 'चौरा' भी कहते हैं। यह हरा रंग का एक सब्जी है जो कि एक हाथ लंबे और बहुत
चोली-अपमान की आग
अपमान की आग 1990 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। डोंग्री, बॉम्बे में एक चॉल में रहने वाला विक्रांत नारायण सिंह अमीर होने का सपना देखता है। वह विधुर और
चोली-स्तूप
(वर्तमान वर्दवान) (३) वीरभूम (ज़िले में) (४) मुर्शिदाबाद (ज़िले में) (५) चोल (प्रांत) - ह्वेन त्सांग को यहाँ अशोक का एक स्तूप मिला था। (६) द्रविड़ - यहाँ
चोली-कैलाश खेर
के बाद कैलाश ने काफी गरीबी में दिन गुजारें। घर में नहीं बल्कि कैलाश वहां चॉल में रहते थे। उनके हालत कैसे थे वो इसी बात से पता चलता है कि उनके पास पहनने
चोली-प्रेम धवन
पगड़ी सम्भाल जट्टा मो. रफी जोगी तेरे प्यार में लता मंगेशकर मेरा रंग दे बसंती चोला मुकेश, महेन्द्र कपूर, राजेन्द्र भाटिया पवित्र पापी 1970 तेरी दुनिया से होके
चोली-गोविन्द तृतीय
उसका स्वागत किया। श्रीभवन से वह दक्षिण की ओर बढ़ा। गंगवाड़ी, केरल, पांड्य, चोल और कांची के राजाओं न उसके विरुद्ध एक सैनिक संघ की स्थापना कर ली थी परंतु
चोली-चोड
राजपरिवार था जिसने आंध्र प्रदेश के कुछ भागों पर १२वीं शताब्दी में शासन किया। वे चोलों और पश्चिमी चालुक्यों के जागीरदार थे। उनका राज्य वर्तमान गुंटूर जिले के वेलानाडु
चोली-पूहार, मयिलाडुतुरै
है और पुराने काल में एक बंदरगाह रहा है। कावेरी नदी का नदीमुख समीप ही है। चोल राजवंश के आरम्भिक काल में यह राजधानी रहा था। मयिलाडुतुरै ज़िला "Lonely Planet
चोली-कल्लणै
पर तथा तंजावुर से 45 किमी की दूरी पर स्थित है। इस बांध का निर्माण मूलतः चोल राजा करिकालन के शासनकाल में 150 ई में हुआ था। यह विश्व में चौथा सबसे पुराना
चोली-जटावर्मन् कुलशेखर पाण्टियऩ्
वैवाहिक संबंध किए थे। उसने चोलों की प्रभुता का अंत कर पांड्यों की स्वतंत्रता स्थापित करने का प्रयत्न किया। इस कारण यह चोल नरेश कुलोत्तुगं तृतीय का कोपभाजन
चोली-प्रियंका बोस
निर्देशित फिल्म गंगोर (2010) से शुरू किया, जो भारतीय लेखिका महास्वेता देवी की चोली के पीछे नामक छोटी कहानी पर आधारित है। इस फिल्म में इनके अभिनय के कारण इन्हें
चोली-दौलताबाद
का प्रथम ऐतिहासिक पुरुष माना जाता है। भीलम शक्तिशाली नरेश था जिसने होयसल, चोल तथा चालुक्य राज्यों पर सफल आक्रमण किया था। उसके उत्तराधिकारी सिंघण ने इसे
चोली-डेरा बाबा नानक
स्थित एक नगर है। गुरु नानक देव जी के सुरक्षत किए वस्त्र गुरुद्वारा श्री चोला साहिब गुरदासपुर ज़िला "Economic Transformation of a Developing Economy: The
चोली-जगदेव पंवार
दोनों में युद्ध होना अवश्यंभावी हो गया। जगदेव का चोल राजा कुलोतुंग प्रथम से संघर्ष हुआ। युद्ध में चोल पराजित हुए। गुजरात के सीमान्त पहाड़ी क्षेत्रों में
चोली-संगीत तथा गणित
ध्वनि से बनी है तथा ध्वनि का गणितीय आधार अब सर्वविदित है। विज्ञान व गणित का चोली दामन सा साथ है। संगीत के सिद्धान्तों को समझाने के लिए, प्राचीन समय से ही
चोली-दुष्यंत
दुष्यंत चंद्रवंशी पुरुवंशी के चार पुत्र हुए,, राजा पाण्डय,,राजा केलर,, राजा चौल,, राजा कोल /राजा राम कोल हुए ये चार भाई थे,, इसके प्रमाण महाभारत और हरिबश
चोली-मैसूर
के बाद गंग वंश का प्रभाव पुन: बढ़ने लगा। सन् 1004 में चोलवंशीय राजेंद्र चोल ने गंगों को हराकर दक्षिण तथा पूर्वी हिस्से पर अपना अधिकार कर लिया। मैसूर
चोली-जयसिंह तृतीय (पश्चिमी चालुक्य)
था, जिसने सोमेश्वर का पक्ष लिया था। किंतु उसकी सहायता से विक्रमादित्य ने चोल नरेश को पराजित करके सिंहासन प्राप्त किया। विक्रमादित्य ने जयसिंह की सहायता
चोली-कम्बन
शडयप्पवल्लर का आदर एवं कृतज्ञता के साथ स्मरण किया है। पता यह भी चलता है कि कंबन चोल और चेर राजाओं के दरबार में भी गए थे, पर उन्होंने उक्त राजाओं में से किसी
चोली-भारतीय वस्त्र
टोपी कलाई-लंबाई से लेकर आस्तीन के साथ। मुख्य लेख: घाघरा चोली एक घाघरा चोली या एक लहंगा चोली राजस्थान और गुजरात में महिलाओं के पारंपरिक कपड़े है। पंजाबी
चोली-डंडिया रास
महिलाओं के इस तरह के दर्पण का काम है और भारी गहने के साथ चमकदार रंगीन कढ़ाई चोली, घाघरा (पारंपरिक पोशाक) के रूप में पारंपरिक कपड़े पहनते हैं। पुरुषों विशेष
चोली-कोलार
Dam In Yargol कोलार भारत के पुराने स्थलों में से है। इस जगह के निर्माण में चोल और पल्लव का योगदान रहा है। मध्यकाल में यह विजयनगर के शासकों के अधीन रहा।
चोली-दत्तात्रेय
गरुडेश्वर विजापूर कडगंची सायंदेव दत्तक्षेत्र - कर्नाटक कोल्हापूर माणिकनगर - बीदर चौल अष्टे खामगाव - बुलढाणा अंबेजोगाई सांखळी (गोवा) नारेश्वर श्री दत्त मंदिर संस्थान
चोली-सूर्यवर्मन प्रथम
राजवंश से भी राजनैतिक नाता जोड़ लिए।:136 सूर्यवर्मन प्रथम ने सम्राट राजराज प्रथम को एक रथ भेंट किया। इतिहासकारों का मानना है की राजराज
चोली-मुदलियार
भी प्रयुक्त किया जाता था क्योंकि यह वेल्लालर जाति पर लागू होता है। इनका चोल/चेर/पांडिया साम्राज्यों के साथ निकट संबंधों का लंबा इतिहास रहा है। अधिक विस्तृत
चोली-ओड़िशा का खाना
उपलब्ध है, इसके निर्माण का नुस्खा अभी भी गुप्त रूप से दशकों से सुरक्षित है। चोला बाड़ा, बोलांगीर बोलिन्गीर, सांस्कृतिक रूप से समृद्ध शहर ओडिशा में मुंह-पानी
चोली-ग्रन्थ लिपि
प्रयोग चोल वंश द्वारा सन ६५० से ९५० के बीच हुआ। बाद के पल्लवों और पांडियन नेदुंचेज़ियन के शिलालेख भी इस शैली की ग्रंथ लिपि के उदाहरण हैं। तंजावूर के चोल वंश
चोली-अजीत
उन्होंने अपने वास्तविक नाम हामिद अली खान को त्यागकर अजीत के फ़िल्मी नाम का नया चोला धारण किया था .फिर उन्होंने नास्तिक, पतंगा, बारादरी,ढोलक,ज़िद,सरकार,सैया,तरंग
चोली-मूवर कोइल
तमिल भाषा में "मूवर कोइल" का अर्थ "तीन मन्दिर" है। इन मन्दिरों का निर्माण चोल साम्राज्य के अधीन नरेशों और इरुक्कुवेल समुदाय के मुखिया, बूती विक्रमसेरी
चोली-वेल्लनाडू
के उत्तर, कर्णाटक के पूर्वोत्तर, महाराष्ट्र के पश्चिम, अर्थात श्रीशैल से चोला स्थान के मध्य, तैलंग-प्रदेश है!" नाथद्वारा के प्रसिद्ध विद्वान और विद्याविभाग
चोली-नेल्लौर
नैल्लोर से 96 किलोमीटर दूर हे। ग्यारह किलों के अलावा यहां पल्लवों और चोल वंश द्वारा बनाए गए मंदिर भी हैं। सात मील के क्षेत्र में फैला यह किला अपने
चोली-कला
करना, (40) चर्मकार्य, (41) चमड़ा उतारना, (42) दूध के विभिन्न प्रयोग, (43) चोली आदि सीना, (44) तैरना, (45) बर्त्तन माँजना, (46) वस्त्र प्रक्षालन (संभवत:
चोली-मौर्य राजवंश
में पाए गए हैं। उसके शिलालिखित धर्मोपदेश प्रथम तथा त्रयोदश में उनके पड़ोसी चोल, पांड्य तथा अन्य राज्यों का वर्णन मिलता है। चुंकि ऐसी कोई जानकारी नहीं मिलती
चोली-सोलह शृंगार
नर नारी धारण करते थे। पुरुष एक उत्तरीय और अधोवस्त्र पहनते थे और स्त्रियाँ चोली और घाघरा। यद्यपि वस्त्र रंगीन भी पहने जाते थे तथापि प्राचीन नर-नारी श्वेत
चोली-प्राचीन भारत
चित्तलदुर्ग तथा मास्की में अशोक के शिलालेख पाए गए हैं। चुंकि उसके पड़ोसी राज्य चोल, पांड्य या केरलपुत्रों के साथ अशोक या बिंदुसार के किसा लड़ाई का वर्णन नहीं
चोली-कोडगु जिला
पहले था। बाद में कोडगु कई शासकों और वंशजों की राजधानी बना जैसे - पांडवों, चोल, कदम्ब, चालुक्य और चंगलवास आदि। होयसाल ने कोडगु में 1174 ई. पू. अपना आधिपत्य
चोली-राष्ट्रीय राजमार्ग ३३४डीडी (भारत)
राजमार्ग पर कुछ मुख्य पड़ाव इस प्रकार हैं: हामिदपुर, जेवर, झाजर, काकोड़, थाना चोला, बुलन्दशहर। राष्ट्रीय राजमार्ग (भारत) राष्ट्रीय राजमार्ग ३४ (भारत) "New National
चोली-अप्पाकुदाथान पेरुमल मंदिर
पर स्थित पांच पंचरंगा क्षेत्रों में से एक है।माना जाता है कि मध्यकालीन चोलों से अलग-अलग समय में योगदान के साथ मंदिर महत्वपूर्ण पुरातनता का है। मंदिर
चोली-गोरखनाथ
किया जा सका है कि दक्षिण के राजा राजेंद्र चोल ने मणिकचंद्र को पराजित किया था। बंगला में ‘गोविन्द चंजेंद्र चोल ने मणिकचंद्र के पुत्र गोविंदचंद्र को पराजित
चोली-संगम साहित्य
उपयोगिता अनन्य है। इस साहित्य में उस समय के तीन राजवंशों का उल्लेख मिलता है : चोल , चेर और पाण्ड्य। तमिल ईसा काल के आरंभ से ही लिखित भाषा के रूप में आ गयी
चोली-बन्दी छोड़ दिवस
उन्हें रिहा कर दिया जाएगा तो गुरू हरगोबिंद साहिब जी ने 52 कलियों वाला जामा (चोला) पहनकर सभी राजाओं को छुड़वा लिया|इस तरह तब से गुरु साहिब को बन्दी छोड़ दाता
चोली-कौमोदकी
मोटी और पीपे के आकार की है और पल्लव गदा को पूर्णतः मोटी चित्रित की गई है। चोला शिल्प में गदा पतली परंतु और उभरी हुई और भागित है। विष्णुधर्मोत्तर पुराण के
चोली-आन्ध्र प्रदेश
विष्णुकुंडीना, पूर्वी चालुक्य और चोला ने तेलुगू भूमि पर शासन किया। तेलुगू भाषा का शिलालेख प्रमाण, 5वीं ईस्वी सदी में रेनाटी चोला (कडपा क्षेत्र) के शासन काल
चोली-तिरुवन्नामलई
साम्राज्य के चोल वंशी राजाओं ने 9वीं और 10वीं सदी के बीच में बनवाया था। यह मंदिर अपने विशाल गोपुरम के लिए प्रसिद्ध है। नौवीं सदी में चोल साम्राज्य के
चोली-मलाल (फिल्म)
की एक चॉल में रहते हैं। शिवा मोरे एक बेरोजगार मराठी युवक है। वह बी.ए. अंतिम वर्ष का छात्र है, परंतु उसे नौकरी नहीं मिल पाती। वह मुंबई की एक चॉल में रहता
चोली-टोडाभीम
पुराना चोला स्वयं ही त्याग दिया था। भक्तजन इस चोले को गंगा में प्रवाहित करने के लिए सबसे समीप मंडावर रेलवे स्टेशन पहुंचे। ब्रिटिश स्टेशन मास्टर ने चोले को
चोली-बुद्धदत्त
शताब्दी के एक थेरावाद बौद्ध लेखक थे। उनका जन्म उरगपुर में हुआ था जो उस समय चोल आम्राज्य के अन्तर्गत था। कालम्ब राजवंश के अच्युतविक्रान्त के संरक्षण में
चोली-मालदीव
संभवतः अन्य उत्तरी प्रवाल द्वीप भी मध्यकालीन चोला तमिल सम्राट, राजा राजा चोला 1 के द्वारा विजयी कर लिए गए और चोला राज्य का हिस्सा बन गया। मालदीव लोक कथाओं
चोली-मदुरई
आयोजित नाट्य होते हैं। मदुरई शहर का उत्थान दसवीं शताब्दी तक हुआ, जब इस पर चोल वंश के राजा का अधिकार हुआ। मदुरई की संपन्नता शताब्दी के आरंभिक भाग में कुछ
चोली-छलिया नृत्य
पारंपरिक कुमाउँनी पोशाक पहेनते हैं, जिसमें सफेद चूड़ीदार पायजामा, सिर पर टांका, चोला तथा चेहरे पर चंदन का पेस्ट शामिल हैं। तलवार और पीतल की ढालों से सुसज्जित
चोली-पेंटहाउस
दान-ताए ने शादी करने का फैसला किया। उनकी सगाई की पार्टी ओह यून-ही और हा यून-चोल द्वारा बाधित की जाती है, जो अभी अमेरिका से वापस आ गए हैं। रहस्य उजागर होने
चोली-विरुपाक्ष मंदिर, ओड़िशा
ने करवाया था जो इस वंश का सबसे प्रतापी शासक था। इसने सिँहासन पर बैठते ही चोल, होयसल और वनवासी के राजाओं को परास्त कर दिया था। विक्रमांकदेवचरित के रचयिता
चोली-तुर्वसु
वंश की शाखा थी जो आगे चलकर पौरव कुल में मिल गई। कहा जाता है कि पांड्य तथा चोल आदि राजवंश की स्थापना तुर्वशों ने की थी। मैकडॉनल : वैदिक इंडेक्स; माइथोलाजी;
चोली-भारत का इतिहास
कर्नाटक तक फैल गया था। पर वो सम्पूर्ण दक्षिण तक नहीं जा सका। दक्षिण में चोल सबसे शक्तिशाली निकले। संगम साहित्य की शुरुआत भी दक्षिण में इसी समय हुई। भगवान
चोली-आवैय्यार
पुरनाणूरु में 59 कविताएँ लिखीं। द्वितीय अवैय्यार का जीवनकाल १०वीं शताब्दी में चोल राजवंश के काल में रहा। अतः वे कम्बर और ओत्ताकूतर के समय में रहीं। तमिल लोग
चोली-मालकांगनी
पहाड़ी स्थानों में पाई जाती है। इसके बीज भूरे होते हैं तथा सिन्दूरी बीज चोल से ढंके होते हैं। इसकी पत्तियां आर्तवजनक होती हैं। पत्तियों का रस अफीम विषाक्तता
चोली-कारइक्काल अम्मई
कारइक्काल अम्मई तमिल सन्त लेखिका थीं। कारइक्काल चोल तमिलनादड्ड के समुद्रि व्यापारिक शहर हे।धानथनथनार नामक सोदागर को जन्म हुआ था।बचपन से अम्माई बगवान की
चोली-तिरुपति
यह एक प्रमुख धार्मिक केंद्र के रूप में स्थापित हो चुका था। कहा जाता है कि चोल, होयसल और विजयनगर के राजाओं का आर्थिक रूप से इस मंदिर के निर्माण में खास
चोली-भारत के राजवंशों और सम्राटों की सूची
अंतिम राजा। ध्यान दें कि प्राचीन चोल राजवंश के शासन वर्ष अभी भी विद्वानों के बीच विवादित हैं। प्राचीन चोल या संगम चोल राजवंश के शासकों की सूची- एरी ओलियान
चोली-भरत (महाभारत)
गया| इसी वंश मे आगे चलकर ,राजा पाडय ,राजा केलर , राजा राम कोल(कोली) ,राजा चौल ,नामक चार भाई हुए ,जिन्होने अपने अपने नाम से विभिन्न देश बसाए इसी वंश मे
चोली-जटावर्मन् वीर पांड्य प्रथम
अनेक अभियानों में भाग लिया। उसके अभिलेखों से ज्ञात होता है कि उसने कोंगु, चोल और लंका की विजय की; वडुग लोगों की पहाड़ी को नष्ट किया, गंगा और कावेरी के
चोली-पेरुमल
थी: पश्चिमी गंग वंश श्रीपुरुष राजमल्ला नीतिमार्ग पाण्ड्य राजवंश मरन चतयान चोल राजवंश परांतका पल्लव राजवंश कांची के परमेश्वर वर्मा द्वितीय मकोताई के चेरा
चोली-सिक्किम की वेशभूषा और पारंपरिक पोशाक
कहते हैं, और एक बेल्ट जिसे पटुकी कहते हैं पहनते हैं। फरिया, चौबन्दी चोली, झारो चोली, हेम्ब्री, पचौरी नेपाली समुदाय की महिलाएं एक रंगीन साड़ी पहनती है जिसे
चोली-चित्रगुप्त
सबसे ताकतवर नौसेना के जनक चक्रवर्ती सम्राट राजेंद्र प्रताप चोल और चक्रवर्ती सम्राट राज प्रताप चोल या कार्कोंट राजवंश के महान शासक चक्रवर्ती सम्राट राजा ललितादित्य
चोली-भारतनाट्यम- एक प्राचीन कला
जुड़ा हुआ है। भारतनाट्यम का निर्माण तमिलनाडु के चोल वंशीय शासक राजाराज चोल और उसके पुत्र राजेंद्र चोल द्वारा किया गया, जो इस नृत्य के प्रवर्तक माने जाते